गाढ़ा समय ...

 मेट्रो मत न्यूज़ :-

प्रार्थनाएं मूक होकर,काम अपना कर रहीं थी।

आह पूरित श्वास जब-तब,सांस विह्वल भर रही थी।

दौर जो बीता  कड़ा था,

हृदय का था चाप बढ़ता

समय का भी रथ अड़ा था।

लोक से परलोक तक की, राह दुर्गम चल रही थी।

आह पूरित श्वास जब-तब,सांस विह्वल भर रही थी।

टूटती संवेदनाएं मौन साधे थीं,

कर्म की रसरी हमारे हाथ बांधे थी,

कुछ न रोचक अब बचा था योजनाओं में,

एक ही थे कृष्ण उनकी एक राधे थी।

काल के कंकाल पर फिर एक संध्या ढल रही थी।

आह पूरित श्वास जब-तब,सांस विह्वल भर रही थी।

प्रार्थनाएं मूक होकर,काम अपना कर रहीं थी।

आह पूरित श्वास जब-तब,सांस विह्वल भर रही थी।

🌹🌹

डॉ नीलिमा पाण्डेय

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