धनक नीलिमा' नारी के विषण्ण जीवन की गाथा

"जहां प्रतीक्षा में बैठी रही मैं, वह धरा दरक गई है।"

मेट्रो मत न्यूज़ :- डॉ. नीलिमा पांडे जी एक प्रतिभावान और बेबाक कवयित्री हैं। 'धनक नीलिमा' नीलिमा जी का काव्य संग्रह है जिसमें उनकी 100 से अधिक कविताओं का संकलन है। इस पुस्तक में नारी के प्रेम, समर्पण, अंतर्द्वंद्व, विद्रोह, परिवर्तन आदि भावों को बहुत बारीकी से उकेरा गया है। कविताएं छोटी-छोटी हैं परंतु उन पर घंटों तक विचार किया जा सकता है।

मेट्रो मत संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान उन्होंने बताया  'रूपांतरण', 'व्यवस्था', 'अकेलापन', 'मिलन', 'रोशनी' आदि ऐसी कविताएं हैं जो छोटी होते हुए भी गागर में सागर भरने का काम करती है। 'क्षितिज बन जाऊं' में जहां स्त्री के प्रेम और समर्पण की पराकाष्ठा है वहीं 'एकल प्रवास' में पुरुष के झूठे प्रेम का अनावरण होते भी देखा जा सकता है। "मैं भीतर से हिल रही हूं, जैसे भूकंप आ रहा हो...." और "टूटे तिनके दे- देकर बहलाते रहे मुझे..." जैसी पंक्तियां पाठक के हृदय में दर्द का सुआ चुभो देती हैं। इनकी कविताओं में स्त्री के जीवन का खालीपन, उसके विश्वास और उस विश्वास का दुरुपयोग भी  दिखाई देता है। 'सुगना लौट आएगा', 'प्राण', 'फुनगी' आदि कविताओं में यह दर्द स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। नीलिमा जी की रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने नारी मन की सबसे कठिन भावनाओं को बड़े ही सरल और सहज शब्दों में व्यक्त किया है। कहीं भी अनावश्यक साहित्य थोपने का प्रयास नहीं किया गया है। 'तुम मिले', 'तुम ही तुम', 'मैं जा रही हूं' आदि कविताओं में स्त्री के उदात्त प्रेम की अभिव्यंजना दिखाई देती है। नीलिमा जी की कविताओं की नायिका तो यहां तक कह देती है कि, " 'मैं' को त्यागना चाहती हूं, मैं 'तुम' बन जाना चाहती हूं।" प्रेम और समर्पण की पराकाष्ठा की इतनी सुंदर अभिव्यक्ति बिरले ही देखने को मिलती है।

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