गहना गढ़ा दे पिया....
मेट्रो मत न्यूज़ :-
मोहे माटी की चादर ओढ़ा दे पिया।
चादर ओढ़े मैं बगीचे में जाऊॅंगी,
पौधों में समाकर फूल महकाऊॅंगी,
जल की तरंगों के संग
क्यारियाॅं सजाऊॅंगी ।
आ बगीचे में नया रंग चढ़ा दे पिया ,
मोहे माटी की चादर ओढ़ा दे पिया।
धूल ही धूल बन मैं उड़ती फिरूॅंगी,
किसी संन्यासी की मैं पदरज बनूॅंगी,
पीपरा का बीज लेकर ,
पावन हो जाऊॅंगी।
माथे से लगा के मान बढ़ा दे पिया,
मोहे माटी की चादर ओढ़ा दे पिया।
इक गहना नया सा गढ़ा दे पिया,
मोहे माटी की चादर ओढ़ा दे पिया।
डॉ नीलिमा पाण्डेय मुंबई ।