मैं खुद से कुछ बोल रही हूॅं...
मेट्रो मत न्यूज़ :-
बैठ के गुमसुम गैलेरी में,
मन की गाॅंठें खोल रही हूॅं।
मन ही मन बतिया लेती हूॅं
मैं खुद से कुछ बोल रही हूॅं।
क्या कारण जो जुड़ते हैं सब?
क्या है इन प्रश्नों का उत्तर,
खोज रही हूॅं,तोल रही हूॅं।
मन की गाॅंठें खोल रही हूॅं।
मैं खुद से कुछ बोल रही हूॅं।
कितने जीव धरा पर उतरें?
कितने डूबें, कितने उबरें?
क्यों कोई लगता अपना सा?
भ्रम के भॅंवर में डोल रही हूॅं।
मन की गाॅंठें खोल रही हूॅं।
मैं खुद से कुछ बोल रही हूॅं।
बैठ के गुमसुम गैलेरी में,
मन की गाॅंठें खोल रही हूॅं।
मन ही मन बतिया लेती हूॅं
मैं खुद से कुछ बोल रही हूॅं।
डॉ नीलिमा पांडे मुंबई।