धामी का राज्यहित में ‘धाकड़’ निर्णय

मेट्रो मत दिल्ली ( आशीष रावत ) उत्तराखण्ड राज्य भारत के मानचित्र पर एक ऐसा राज्य बनकर उभरा है जहां प्रत्येक संसाधन उपलब्ध हैं। एक मायने में कहा जाए कि उत्तराखण्ड में स्थानीय संसाधनों की भरमार है। इस मध्य हिमालयी क्षेत्र में तराई भावर से लेकर हिमाच्छादित उच्च हिम शृंखलाओं तक पाए जाने वाले संसाधन वर्तमान तक बाहर के मानव को अपनी ओर आकर्षित करते आए हैं। पहाड़ों की उतनी ही खूबसूरत और मन को छूकर आनन्दित करने वाली छटा हर दिशा में देखने को मिलती है।
वर्तमान में यह कहना हर्ष का एहसास कराता है कि हमारी वर्तमान पीढ़ी अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए धीरे-धीरे जागरूक होती जा रही है। जहां हम क्षेत्र विकास की बात करते हैं वहां हमें विकास की अवधारणा को समझना अति-आवश्यक है। उत्तराखण्ड में भू-कानून और मूल निवास 1950 लागू करने की मांग तेज हो गई है। लोगों ने मूल निवास लागू करने और कट ऑफ डेट 26 जनवरी, 1950 घोषित किए जाने के साथ भू-कानून लागू किए जाने की जोरदार तरीके से मांग उठाई। उत्तराखण्ड की सबसे पुरानी मांग भू-कानून और मूल निवास लागू करने की है। राज्य गठन के बाद से अब तक लगातार भू-कानून और मूल निवास लागू करने की मांग होती आई है। समय-समय पर मांग कमजोर पड़ती गई। अब अचानक मांग को लेकर लोगों में सक्रियता देखी जा रही है और इसी मुद्दे को उठाकर विपक्षी दल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का भी काम जोरशोर से कर रहे हैं। राज्य सरकार ने हाल ही में मूल निवास कानून को लेकर एक आदेश पारित किया था। वहीं, भू-कानून को लेकर भी मुख्यमंत्री ने एक समिति बनाई है। समिति की रिपोर्ट आने के बाद कानून बनाने पर विचार किया जाएगा। समिति न केवल राज्य में लागू भूमि कानूनों के प्रारूप की निगरानी करेगी, बल्कि मूल निवास प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए नियम स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। समिति का गठन राज्य के समग्र कल्याण के लिए पूर्व में स्थापित भूमि कानून समिति की सिफारिशों पर आधारित है। समिति राज्य में भूमि की आवश्यकता और उपलब्ध भूमि के संरक्षण के बीच संतुलन सुनिश्चित करते हुए विकास परियोजनाओं में योगदान देगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा राज्य का मुख्यमंत्री नियुक्त होने के बाद उसी वर्ष अगस्त माह में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। समिति को राज्य में औद्योगिक विकास कार्यों हेतु भूमि की आवश्यकता तथा राज्य में उपलब्ध भूमि के संरक्षण के मध्य संतुलन को ध्यान में रखकर विकास कार्य प्रभावित न हों, इसको दृष्टिगत रखते हुए विचार-विमर्श कर अपनी संस्तुति सरकार को उपलब्ध कराने को कहा था। हाल ही में धामी ने कहा कि पूर्व में गठित समिति द्वारा राज्य के हितबद्ध पक्षकारों, विभिन्न संगठनों, संस्थाओं से सुझाव आमंत्रित कर गहन विचार-विमर्श कर लगभग 80 पृष्ठों में अपनी रिपोर्ट तैयार की थी। समिति ने अपनी संस्तुतियों में ऐसे बिंदुओं को सम्मिलित किया है जिससे राज्य में विकास के लिए निवेश बढ़े और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो। साथ ही भूमि का अनावश्यक दुरूपयोग रोकने की भी समिति ने अनुशंसा की है। मुख्यमंत्री धामी ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्यहित सर्वाेपरि है और राज्यवासियों ने जिस संकल्प के साथ राज्य निर्माण का सपना देखा है उसको पूर्ण करने के लिए वे निरंतर प्रयासरत हैं। राज्यवासियों का राज्यहित से जुड़ा भू-कानून हो या मूल निवास प्रमाण-पत्र का विषय इस दिशा मे राज्य सरकार संजीदगी के साथ राज्यवासियों के साथ है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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