महाकवि गोपालदास नीरज गीतों में आज भी जिंदा है :- लाल बिहारी लाल
मैट्रो मत न्यूज ( संवादाता दिल्ली ) हिंदी के महाकवि गोपालदास नीरज का जन्म 4 जनवरी 1925 को उ.प्र.के इटावा जिला के पुरावरी गांव में हुआ था। इनका बचपन काफी मुफलिसी में बिता । शुरु में गंगा मैया में चढ़ाये जाने वाले 5 या 10 पैसे को नदी से एकत्र कर जीवन यापन होता था। इस मुफलिसी ने उन्हें गीतकार बना दिया।
धीरे धीरे इनकी रचनाये विभिन्न मंचो पर वाहवाही लूटने लगी। इनकी रचनाये जनमानस को सीधे छू जाती थी। जो आज भी इनकी रचनायें कालजयी है। गोपालदास "नीरज"कुछ फिल्मों के लिए भी गीत लिखा जो अपने जमाने में काफी लोकप्रिय हुए औऱ आज भी हिंदी प्रेमी के मन मषतिष्क पर दर्ज है। वो हम न थे,वो तुम न थे/ शोखियों में घोला जाये फूलो का शबाब/ स्वप्न झरे फूल से,गीत चुभे शूल से/ लिखे जो खत तुझे/ ऐ भाई जरा देख के चलो/दिल आज शायर है/जीवन की बगिया महकेगी/मेघा छाये आधी रात/खिलते हैं गुल यहाँ/फूलो के रंग से/रंगिला रे तेरे रंग में/ मेरो सैंया/ राधा ने माला जपी श्याम की/देखती ही रहो आज तुम दरपन/गुलाबी फूल रेशमी उजाला है/मखमली अंधेरा काल का/कहता है जोकर सारा जमाना/आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ आदि। उन्हें फिल्मो के लिए लगातार तीन साल फिल्म फेयर एवार्डमिला।सन 1970 में गीत –काल का पहिया घूमे रे भइया, फिल्म चंदा और बिजली, 1971 में बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं, फिल्म पहचान के लिए तथा 1972 में गीत-ए भाई जरा देख के चलो फिल्म मेरा नाम जोकरके लिए। इन्होने कुछ मुक्तक तो कुछ हाइकू भी लिखा एक हाइकू- जन्म मरण,समय के गति के,हैं दो चरण । इनकी कुछ रचनाये बच्चो पर भी है - हम बच्चे हैं तो क्या? कुछ विद्वानो ने इनके बारे में अलग अलग विचार दिये हैं- कोई इन्हें अश्वघोष कहा तो कोई इन्हें संत फकीर वही दिनकर जी ने इन्हें हिंदी के वीणा मानते थे। इनकी प्रकाशित कुछ पुस्तकों में कालानुसार- संघर्ष (1944), अन्तर्ध्वनि (1946), विभावरी (1948), प्राणगीत (1951), दर्द दिया है (1956), बादर बरस गयो (1957), मुक्तकी (1958), दो गीत (1958), नीरज की पाती (1958), गीत भी अगीत भी (1959), आसावरी (1963), नदी किनारे (1963), लहर पुकारे (1963), कारवाँ गुजर गया (1964), फिर दीप जलेगा (1970), तुम्हारे लिये (1972), नीरज की गीतिकाएँ (1987) आदि।नीरज जी को अब तक कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हो चुके हैं, जिनमें –विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार, पद्म श्री सम्मान (1991), भारत सरकार , यश भारती एंव एक लाख रुपये का पुरस्कार (1994), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा पद्धम भूषण सम्मान(2007), भारत सरकार द्वारा। 19 जुलाई 2018 को फेफड़े में संक्रम के कारण इस वीणा के तार की झंकार सदा सदा के लिए खामोश हो गया।
लेखक-लाल कला मंच के सचिव एवं साहित्य टी.वी. के संपादक है।