आज़ादी के 75 वें अमृत महोत्सव पर भारतीय बैंकों की भूमिका :- सौम्या शिवानी

मैट्रो मत न्यूज ( संवाददाता नई दिल्ली ) देश को मिली आजादी के बाद से अब तक 75 वर्षों मे हमारे भारत के बैंक सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की रीढ बन गए हैं । सामाजिक उत्थान, कृषि व किसानी, व्यापारिक,  औद्योगिक, विदेशी व्यापार, सहकारिता, चिकित्सा,  विज्ञान, आवास,  शिक्षा और रोजगार सृजन आदि जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में बैंकों की अहम भूमिका है। बैंक व्यवस्था,  प्रशासन सुधार,  आधुनिकीकरण विस्तार, पारदर्शिता, सम- व्यवहार, बैंक कर्मचारियों को उच्चतम प्रशिक्षण, ग्राहक सुविधाओं का निरंतर व तीव्र विस्तार और पैनी सतर्कता आदि वर्तमान व भावी समय की मांग है।
कौन कहता है कि आसमान मे छेद नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालकर  मारो यारो। इस बात को कर दिखाया भारतीय बैंकों ने। क्या कोई सोच सकता था कि भारतवर्ष से 'महाजनी प्रथा' का उन्मूलन होगा? देश को आजादी मिलने के बाद बैंकों के माध्यम से भारत सरकार ने शोषण व दोहन करने की महाजनी प्रथा को समाप्त कराया। जरूरतमंदों को सुगमतापूर्वक न्यूनतम व्याज पर ऋण प्रदान करा कर महाजनी कुप्रथा का समूल नाश किया हमारे भारतीय बैंको की अद्वतीय भूमिका ने। यदि यह कहें कि हमारे बैंकों की हमारे समाज और देशहित मे यह प्रथम सार्थक उपलब्धि रही है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।भारतीय बैंक-  भारतीयता की पहचान व जन मानस में धन संचय 'गुल्लक' के संस्कार कौन कहता है कि भारतीय बैंकों की स्थापना, इसकी नीति, इसका मूल सिद्धान्त आदि विदेशी बैंकों का नकल करके किया गया है ? बैंकों का इतिहास हमारे घर आँगन से शुरू हुआ था जब अपने बच्चों को माता पिता मिट्टी से निर्मित गुल्लक लाकर दिया करते थे और बच्चे उसमे 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे, चौअन्नी, अठन्नी आदि अपने माँ बाप से ही जिद्द करके लेते थे और इसे गुल्लक मे डालकर जमा करते थे। मुसीबत आने पर, आकस्मिक जरूरत पड़ने पर वही माँ- बाप बच्चों को बोलते थे, गुल्लक को फोड़कर सारे रुपए दे दो, जितना इसमे निकलेगा, वह तो वापिस मिलेंगे ही, इसके अलावा 2-4 चौअन्नी, अठन्नी और दे दूंगा, नयी गुल्लक मे डालकर रूपिये बढ़ा लेना। बच्चों की आँखों मे धन संचय की चमक और उसे बढ़ाने की लालसा। बच्चे खुशी खुशी फौरन उस मिट्टी के गुल्लक को तोड़कर उसमे जमा सिक्कों की गिनती कर अपने पिता- माता को दे देते थे और साथ मे वापस करने की शर्त भी याद दिलाना नहीं भूलते थे कि 2-4 चौअन्नी मिलाकर समय पर वापस दे देना वरना 2 अठन्नी अतिरिक्त देना होगा। धन संचय करना, ऋण देना, समय पर इसका काम आना, व्याज, समय पर इसे वापस नहीं करने पर अतिरिक्त जुर्माना/ चक्रवृद्धि व्याज देना आदि क्या मिट्टी के उस गुल्लक मे समाहित नहीं था? इसलिए शायद किसी बैंक ने अपनी पहचान 'गुल्लक' से ही कराई थी अर्थात गुल्लक उनका लोगो हुआ करता था। यदि मै यह कहूँ कि प्राचीन धर्मविज्ञान, प्राचीन कलाकृतियाँ, प्राचीन मंदिरों के विन्यास आकल्पन रचना, प्राचीन औषधि, धर्म इतिहास, धर्म शास्त्र व शस्त्र आदि की तरह विदेशियों ने हमारे गुल्लक रूपी बैंक नीति को चुराकर बैंक की स्थापना की है तो कुछ भी अत्युक्ति नहीं होगी। आज हम आज़ादी  के 75वें अमृत महोत्सव स-उल्लास, उमंग, धूमधाम और गर्मजोशी के साथ मना रहे हैं, हर हाथ तिरंगा, घर-घर तिरंगा का नारा देकर रंगारंग कार्यक्रम कर रहे हैं परंतु आज़ादी के 75वें अमृत महोत्सव पर भारतीय बैंकों की भूमिका को भी हमे अपने मानस पटल पर देखने की अवश्यकता है। हमारा देश भूखे नंगे देशों के बीच अब्बल श्रेणी मे आता था, न खाने के लिए अनाज, न पहनने के लिए कपड़ा और ना ही रहने के लिए मकान अर्थात रोटी, कपड़ा, मकान से हम पूरी तरह विमुख थे, कुछ भी नहीं था। आजाद भारत सरकार के तत्कालीन कर्णधारों- सत्ताधीशों  ने देश को इन सभी विसंगतियों से निकाला। उन्होंने इसके लिए सरकारी बैंको को प्रमुख माध्यम बनाया। आजादी के बाद देश मे अनाज की भारी किल्लत एक त्रासदी थी, किसानों और किसानी की दुर्दशा असहनीय थी, इस त्रासदी को हमारे सत्ताधीशों सहित बैंकों ने भी एक चुनौती के रूप मे स्वीकार किया। बैंककर्मी स्वतः किसानों के द्वार पर गए, उन्हे उत्तम और वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के लिए मात्र प्रोत्साहित ही नहीं किया वरन बिना किसी विलंब, संदेह और शर्तों के उन्हे पर्याप्त धन मुहैया कराया, जितना किसानों ने मांगा, उससे भी ज्यादा दिया। परिणामस्वरूप किसानों ने ट्रैक्टर खरीदे, नए नए कृषि उपकरण खरीदे, सिंचाई के लिए बोरिंग कराया, उत्तम किश्म के बीज खरीदे, फसल के लिए खाद खरीदे वैज्ञानिक तरीके का कृषि प्रशिक्षण पाया जिससे अनाज का पैदावार बढ़ते गया, बढ़ते गया, परिणाम आज सभी के सामने है, कभी हम भीख मांगकर पी एल 40 गेंहू खाते थे और आज हम दूसरे देशों को अनाज देते है। यह तभी संभव हो सका जब भारतीय बैंकों ने बिना किसी स्वार्थ के हौसला दिया, हिम्मत दी, मार्गदर्शन किया। देश को बैंको का यह क्रांतिकारी योगदान है। आजादी मिलने के बाद यहाँ न तो कोई रोजगार था और ना ही कोई उद्योग, ना ही आधुनिक कल कारखाने, कुछ भी नहीं था, हमारे यहाँ एक सुई तक नहीं बनती थी। था तो सिर्फ और सिर्फ भारतीय बैंको की ओर उम्मीद की कुछ किरणें।  भारतीय बैंको और उनके कर्मियों की कर्तव्यनिष्ठा, कर्मठता और दूरदर्शिता ने उद्दमियों का हौसला बढ़ाया, बढ़ चढ़ कर उन्हे पर्याप्त धन मुहैया कराया, परिणाम हमारे सामने है।  आज आज़ादी  के 75वें अमृत महोत्सव पर हम देख रहे हैं कि देश मे सभी प्रकार के आधुनिकतम उद्योग और औद्योगिक घरानों की एक फौज खड़ी है। औद्योगिक क्षेत्रों मे हमारे देश का परचम विश्व मे लहरा रहा है। लाखों लोगों को रोजगार मिला, हम और हमारा देश आर्थिक रूप से मजबूत हुये। आज हमारे देश मे सुई से हवाई जहाज बनता है, रॉकेट, राकेट लाँचर से लेकर तेजस ऐसा युद्धक विमान, अंतरिक्ष से लेकर मंगल मिसन कार्य, वैज्ञानिकों, डाक्टरों, इंजीनियरों की विश्व मे सर्वोत्तम फौज है, परमाणु सम्पन्न देश की यह अकल्पनीय उपलब्धि हमारे बैंकों और बैंक कर्मियों के दृढ़ विशास, आत्मविश्वास, दूरदर्शिता और कर्मठता का एक ज्वलंत उदाहरण और परिचायक है। बैंक एक तरफ जहां बड़े बड़े उद्योगों का उत्साहवर्धन करती है, वहीं दूसरी तरफ गरीब व मजदूर तबके के लोगों का जीवन स्तर को ऊंचा बढ़ाने के लिए भी सदा तत्पर रहती है। पैडल रिक्शा चालक दिनभर पसीने बहाकर बहुत मूस्किल से जहां 300 रूपिये प्रतिदिन कमाते थे, आज वही रिक्शा चालक कुछ हज़ार रूपिये देकर बैंक से लोन लेकर ई- रिक्शा ले लेते है  और दिनभर मे कम से कम एक हज़ार रूपिये कमा लेते है। उसका जीवन स्तर सुधर गया और वे भी अब अपनी संतानों को पब्लिक स्कूल भेजने लगे हैं। यह अमूलचूक परिवर्तन संभव हो पाया हमारे बैंको की सराहनीय भूमिका के कारण। एक जमाना था जब अमीर लोग ही कार खरीदते थे, सड़क पर विरले ही कार दिखाई देते थे और आज सामान्य वर्ग के लोग भी बैंको के उदारवादी नीतियों के कारण कार खरीदने के सपने को पूरा कर रहे हैं। हर घर खुशियाँ, हर घर कार का सपना हमारे दहलीज पर खड़ा है। कारों की लगातार बढ़ती मांगों को पूरी करने में आंटी उद्योग तेजी से निरन्तर तरक्की कर रहा है। शिक्षा विकास में बैंकों का महत्वपूर्ण योगदान कहते हैं कि वह देश कभी विकसित देशों की श्रेणी मे नहीं आ सकता जिस देश मे शिक्षा ना हो। विश्व के कई विकसित देशों मे विश्व स्तरीय शिक्षा अनिवार्य और निःशुल्क है। किसी ने ठीक ही कहा है कि वे देश धनी इसलिए हैं क्योंकि वहाँ की सरकार ने वहाँ के लोगों को शिक्षित बनाया। धन की कमी के कारण होनहार छात्र अध्ययन नहीं कर पाते थे। शिक्षा समस्या रूपी दिल की धड़कन को भारतीय बैंकों के अलावे भला और कौन महसूस कर सकता था। अध्ययन के लिए उन्हेने बहुत ही सुगमतापूर्वक ऋण उपलब्ध कराया। बैंको ने छात्रों को विद्याध्ययन के दौरान ऋण चुकाने के तनाव से मुक्त कर तन्मयता पूर्वक अध्ययन करने की व्यवस्था की। वे जिस देश मे चाहें, जितना चाहें, जब तक चाहें, अध्ययन करें, अध्ययन के दौरान उन्हे कोई ऋण चुकाने की अवश्यकता नहीं है। अध्ययन समाप्ति के बाद भी वे चिंता नहीं करें। जब नौकरी मिल जाए तो सुविधानुसार वे ऋण वापस करें। भारतीय बैंकों को छोडकर  है कोई बैंक, जिसमे ऐसा करने की अविश्वासनीय हिम्मत और हिमाकत हो? बैंको के क्रांतिकारी कदम से पढ़ लिखकर आज हमारे लाखों युवा दुनिया के नामी गिरामी कंपनियों मे सी ई ओ हैं और देश का नाम रोशन कर रहे हैं। विश्व का कोई ऐसा देश नहीं नहीं है जहां के शीर्ष संस्थानो मे उपर के एक से तीन पदों मे एक भारतीय ना हो।  इसे कहते हैं 75 वर्षों मे युवा पीढ़ी को परम वैभव की चोटी पर पहुँचने वाले भारतीय बैंकों की भूमिका। बैंकों के माध्यम से आवास समस्या का निरन्तर समाधान जारी हमारे देश मे पक्के मकान नहीं थे, मिट्टी की दीवारें, उसके उपर फूंस की छत। चिलचिलाती गर्मी हो, हाड़ काँपने वाली शर्दी हो या मानसून, जिसमे फूस से टिप टिप कर आते हुये वारिस के पानी के बीच हम रहने को विवस थे। इस विवशता को भी महसूस किया हमारे भारतीय बैंकों ने और सरल व्याज पर ऋण देकर सभी को पक्के मकान मे रहने की अकल्पनीय सुविधा प्रदान की। निर्माण की इस कड़ी मे मै यह बताना आवश्यक समझती हूँ कि हमारे यहाँ उत्तम और वैज्ञानिक स्तर के नव निर्माण की कोई सुविधा नहीं थी। भारतीय बैंकों ने भवन निर्माताओं को धन देकर उनका  हौसला बढ़ाया, निर्माताओं ने नए नए अत्याधुनिक उपकरण खरीदे  और तन्मयता पूर्वक भवन निर्माण मे लग गए, परिणाम देश के सामने है। गगनचुंबी इमारतें, बिना पिल्लर के पुल, लंबी चौड़ी फ़्लायओवर, 6-8 लेन की बेमिशाल सड़कें, विश्व स्तरीय मेट्रो रेलों की देशभर मे एक शृंखला बन गयी है जिसमे करोड़ों लोगों को रोजगार मिला, भवन व अन्य निर्माण करने वाली कंपनियों को समिग्री आपूर्ति करने का व्यवसाय मिला,  देश ने निर्माण के क्षेत्रों मे आशातीत सफलता हासिल की। खेल और खिलाडियों के विकास में योगदान अब हम आप को लिए चलते हैं खेल जगत की ओर। खेल के क्षेत्र मे हम अति पिछड़े थे, हम गुल्ली डंडा और काँचा -कंची तक ही सीमित थे। होनहार खिलाड़ी के पास किसी प्रकार का कोई संसाधन नहीं था। बैंकों ने इन खिलाड़ियों की पीड़ा को अनुभव किया। बैंको के सहयोग से कई खेलों के अकादेमी खुले, खेल उपकरण खरीदे गए, कुशल प्रशिक्षक नियुक्त किए गए, कुछ खिलाड़ी प्रशिक्षित हुये और कुछ अति प्रशिक्षित हुये। विश्व स्तर के किसी भी मैच मे खेलना तो दूर, हम क्वालीफ़ाय भी नहीं कर पाते थे, परंतु आज हमारे खिलाड़ी अन्य देशों के खिलाड़ियों के साथ खेल भावना से तो खेलते ही हैं और जरूरत पड़ने पर आँखों मे आँखें डाल कर बातें भी करते है। वे देश के लिए मेडल लेते है और जब वहाँ राष्ट्रध्वज लहराता है,  राष्ट्रगान बजता है तो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है जिसका श्रेय जाता है हमारे भारतीय बैंको को। क्रिकेट, हॉकी, फुटबाल, बेसबाल, बास्केटबाल, नेटबाल, थ्रोबाल, एथेलेटिक्स, फेंसिंग, तीरंदाजी, स्विमिंग, जंपिंग, टेबल टेनिस, लोंग टेनिस, भाला फेंक, बैडमिंटन, शूटिंग, आदि खेलों के सारे उपकरण बनाने का हमारे देश मे एक उदद्योग खड़ा हो गया है जो हमारे खिलाड़ी को खेल उपकरण और अन्य साधन निःशुल्क उपलब्ध करते हैं, जिसका सारा श्रेय जाता है हमारे भारतीय बैंकों को जिसने इन उदद्योगों को खड़ा करने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। मेडल लाने पर इन विजेता खिलाड़ियों को गाँव, समाज और देश पूरा सम्मान देती है, उन्हे अपने सर पर बैठाती है लेकिन वही खिलाड़ी जब उम्र के एक दहलीज पर पहुँचकर खेलने मे असमर्थ हो जाते हैं अथवा अपने फार्म मे नहीं रहते है तो उन्हे जीवन यापन के लिए दर दर भटकना पड़ता है, वे दाने दाने को मोहताज हो जाते हैं, स्कूल, कॉलेज की डिग्री नहीं रहने के कारन इन्हे नौकरी भी नसीब नहीं होती। खिलाड़ियों की इस दर्दनाक शारीरिक, मानशिक और आर्थिक पीड़ा को दिल की गहराईयों से अनुभव और महसूस किया हमारे भारतीय बैंको ने।बैंकों ने लाखो खिलाड़ियों को उसकी शैक्षणिक योग्यता को नज़रअंदाज़ कर अपने यहाँ नौकरी दी और साथ मे यह आज़ादी भी प्रदान की कि जब वे चाहे नौकरी पर आयें और जब न चाहें ना आयें, अपने अपने खेल पर ध्यान दें। उन्हे मासिक वेतन और अन्य सुविधाएं समय पर मिलती रहेगी। आज़ादी  के 75वें अमृत महोत्सव पर हमे यह कहने मे जरा भी झिझक नहीं कि खेल जगत के स्वर्णिम युग का शुभारंभ हुआ भारतीय बैंकों की ऐसी बेमिसाल भूमिका के कारण। धन - दौलत की सुरक्षा में बैंकों का योगदान भारतीय बैंकों ने देशवाशियों की धन दौलत आदि की सुरक्षा को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया। अपने यहाँ लॉकर खोले जिसमे बेसकीमती वस्तुएं, जैसे कीमती आभूषण, गहने-जेवर, महत्वपूर्ण दस्तावेज़ आदि हम रखते है जिसकी सुरक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी बैंक अपने उपर लेती है। बैंक अर्थव्यवस्था की रीढ अब हम चलते हैं अर्थव्यवस्था की ओर जिसमे बैंकों की भूमिका देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए के लिए उपयोगी रहा है जिसका ज्वलंत उदाहरण सभी के सामने है कि भारतवर्ष ने अर्थव्यवस्था मे ब्रिटेन को पीछे छोड्कर विश्व मे अपना पाँचवाँ स्थान बनाया जो भारत के लिए गौरव की बात है। बैंकों ने भारत की आर्थिक गौरव गाथा लिखने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1935 मे बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के अथक प्रयास से भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई। इसके पीछे बाबा साहब का मुख्य उद्देश्य भारत को आर्थिक दृष्टिकोण से मजबूत बनाना था, उन्होने स्पष्ट कहा था कि यदि भारत को आर्थिक दृष्टिकोण से मजबूत बनाना है तो हमे बैंकों की एक शृंखला बनाकर उसे मजबूत करना होगा। आज हमारा देश विश्व मे 5वें स्थान पर है जो स्वतः बैंक की आर्थिक भूमिका को दर्शाता है। भारतवर्ष को सोने की चिड़िया कहा जाता था, वह दिन दूर नहीं जब भारतीय बैंक की भूमिका पुनः भारतवर्ष को सोने की चिड़िया बनाएगी। कहा जाता है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है, इस किवदंतियों को सच करके दिखाया और दिखाएगा हमारा भारतीय बैंक।पंजाब नेशनल बैंक का इतिहास और इसकी उपयोगिता बैंकों की उपलब्धि की इस कड़ी मे अस्थायी सहायक होने के नाते मैं आपका ध्यान पंजाब नेशनल बैंक के इतिहास की ओर ले जाना चाहती हूँ। पंजाब नेशनल बैंक भारत का एकमात्र सबसे पुराना बैंक है जिसकी स्थापना आज़ादी के पूर्व 1894 मे हुई थी जो पूर्णत: भारतीय पूंजी से प्रारम्भ होकर आज प्रथम पंक्ति का बैंकिंग संस्थान बन गया है। इसके संस्थापक लाला लाजपत रॉय और सरदार दयाल सिंह मंजिठिया थे। डालमिया उद्योग  समूह ने आजादी के बाद इसको सजाया, संवारा और राष्ट्रीय हितों के अनुरूप ढाला। पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी जी द्वारा बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद से हमारा पंजाब नेशनल बैंक देश का दूसरा सबसे बड़ा और पुराना सरकारी स्वामित्व वाला बैंक है। पंजाब नेशनल बैंक, क्रेडिट कार्ड, कॉर्पोरेट बैंकिंग, बंधक ऋण, वित्त और वीमा, निवेश बैंकिंग, निजी बैंकिंग, धन प्रवंधन आदि मे माहिर है जिसका अनुसरण अन्य बैंकों द्वारा भी किया गया जिसके परिणामस्वरूप हर क्षेत्र मे भारत का नाम रोशन हुआ है । अर्थात यदि हम यह कहें कि पंजाब नेशनल बैंक अन्य सभी बैंकों का प्रेरणाश्रोत है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज़ादी  के 75वें अमृत महोत्सव पर मै गर्व के साथ कहती हूँ कि भारतीय बैंकों की भूमिका मे पंजाब नेशनल बैंक की भूमिका अग्रणी है और मुझे इस बैंक मे एक अस्थायी सहायक के रूप मे कार्य करने का सु-अवसर और कुछ सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ग्राहकों की बिभिन्न वित्तीय जरूरतों की पूर्ति के लिए हमारे देश मे मुख्य रूप से वाणिज्यिक बैंक, विकास बैंक, सहकारी बैंक, विशेष उद्देश्य बैंक और केंद्रीय बैंक हैं। सभी बैंकों की कार्य प्रणाली मे मत मतांतर हो सकता है परंतु मंजिल और उद्देश्य एक है और वह है समाज और देश को हर क्षेत्र मे उन्नति के शिखर पर पहुंचाना।  यह संभव हो पाया बिभिन्न वर्गों मे विभाजित सभी बैंको की समुद्देश्यता और समुएकजुटता के कारण। बैंको की उदारता के अर्थ? यदि उदारता की बात की जाए और हम यह कहें कि भारतीय बैंक उदारता की एक प्रतिमूर्ति है तो कोई गलत नहीं होगा। ऐसी भी स्थिति देखने को मिलती है जब आर्थिक स्थिति बिगड़ने पर ऋण लेने वाला व्यक्ति समय पर व्याज नहीं चुका पाता और ऋणकर्ता पर मूलधन से ज्यादा व्याज हो जाता है तथा वह ऋण चुकाने मे असमर्थ हो जाता है। इसमे बैंक ऋणकर्ता को मोहलत देते हुये वन टाइम सैटलमेंट का ऑफर देती है। इसमे बैंक इस कर्ज को नॉन परफोरमिंग असेंट मे डाल देती है जिससे कर्ज लेने वाला व्यक्ति दिवालिया घोषित हो जाता है जो कर्ज चुकाने मे अक्षम मान लिया जाता है। बैंक कर्जदार को एकमुस्त थोड़ी राशि चुकाकर कर्ज से बाहर निकलने का अवसर भी देती है। इसमे बैंक मूलधन और व्याज की अधिकांश राशि माफ कर देती है और कर्जदारों को एक बहुत बड़ी राहत देती है। इसलिए मैंने ऊपर कहा था कि बैंक उदारता की एक प्रतिमूर्ति है। गत कुछ वर्षों से ऐसा देखा गया है कि कुछ सक्षम व्यवसायी / उद्योगपति बैंक की इस उदारता का अनुचित लाभ ले रहे है, ऋण लेकर भाग जाते है या ऋण माफ करवा लेते हैं जो बैंक, समाज और देशहित मे नहीं है। मेरे विचार से समाज हित, देशहित को मद्देनजर रखते हुए हमारे सत्ताधीशों, सरकारी तंत्र व रिजर्व बैंक सहित सभी बैंको को इन सभी उदारतावादी नीतियों, नियमों और सिद्धांतों पर गहनतापूर्वक पुनर्विचार करने की अवश्यकता है। 

लेखिका :-  सौम्या शिवानी

मण्डल शास्त्रा, भागलपुर, (बिहार)

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