जन भागिदारी के बिना पर्यावरण संरक्षण असंभव :- लाल बिहारी लाल
मैट्रो मत न्यूज संवाददाता नई दिल्ली :- जब इस श्रृष्टि का निर्माण हुआ तो इसे संचालित करने के लिए जीवों एवं निर्जीवों का एक सामंजस्य स्थापित करने के लिए जीवों एवं निर्जीवों के बीच एक परस्पर संबंध का रुप प्रकृति ने दिया जो कलान्तर मे पर्यावरण कहलाया। जीवों के दैनिक जीवन को संचालित करने के लिए उष्मा रुपी उर्जा की जरुरत पड़ती है। और यह उर्जा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षरुप से धरती के गर्भ में छिपे खनिज लवण,जल ,वायु एवं फसलों के उत्पादन से अन्न एवं फल-फूल से प्राप्त होती हैं। लेकिन धीरे-धारे आबादी बढ़ी तो इनकी मांग भी बढ़ने लगी। लेकिन आबादी तो गुणात्मक रुप से बढ़ी पर संसाधन प्राकृतिक रुप से ही बढ़े । इस बढ़ती हुई आबादी की मांग को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनो पर दबाब तेजी से बढ़ा फलस्वरुप प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तेजी से हुआ। जिससे पर्यावरण की नींव हिल गई । और इस प्रकृति द्वारा दिए सीमित संसाधनों के भण्डार के दोहन से मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ने लगा है।