नृत्यांगना प्रिया वेंकटरामन ने नृत्य-भूमि प्रणाम किया पेश

मेट्रो मत न्यूज़  नीरज पांडे । दिल्ली के लेडी इरविन काॅलेज और लीगेसी आफ आर्ट्स इन वैल्यू एजुकेशन ने आजादी का अमृत महोत्सव सिलसिले में सांस्कृतिक समारोह का आयोजन किया। इस आभासी आयोजन में भरतनाट्यम नृत्यांगना प्रिया वेंकटरामन ने नृत्य-भूमि प्रणाम पेश किया।
इस कार्यक्रम के आरंभ में काॅलेज की प्राचार्य डाॅ अनूपा सिद्धू ने कहा कि हमारा देश भारत सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न है। हमें अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोना जरूरी है। जबकि, कार्यक्रम का संचालन डाॅ मयंका गुप्ता ने किया। समारोह में भरतनाट्यम नृत्यांगना प्रिया वेंकटरामन और उनकी शिष्या अनन्या ने नृत्य पेश किया। प्रिया की शिष्या अनन्या ने भूमि प्रणाम और नृत्त पक्ष को पेश किया। भरतनाट्यम की विभिन्न अडवुओं, मुद्राओं, हस्त मुद्राओं और नौ रसों का विवेचन पेश किया। पुष्पांजलि-गणेश स्तुति को नृत्यांगना प्रिया ने प्रस्तुत किया। यह आदि ताल में निबद्ध था। यह श्लोक-‘गजाननम् अर्हिनिशं एकदंतम्‘ पर आधारित था। उनकी अगली पेशकश अभिनय थी। इसके लिए प्रिया ने गोस्वामी तुलसीदास की रचना का चयन किया। इस भजन के बोल थे-‘ठुमक चलत रामचंद्र‘। इस प्रस्तुति में आंगिक अभिनय और मुखाभिनय के जरिए प्रिया ने वात्सल्य भाव का चित्रण पेेश किया। इसके अगले अंश में, नृत्य नाटिका ‘वंदे मातरम्‘ के अंश को उन्होंने प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति में प्रतिष्ठित लेखक बंकिमचंद और कवयित्री सुभद्रा कुमारी चैहान की रचनाओं को नृत्य में पिरोया गया था। दरअसल, भरतनाट्यम नृत्यांगना प्रिया वेंकटरामन मानती हैं कि हमें अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और उसकी बौद्धिकता पर गर्व है। हमारी कलाएं और संस्कृति हमें जिंदगी से जोड़ती हैं। इन्हें अपनाकर हमारे भीतर आत्मविश्वास आता है। हमारे अंदर अपने प्रति और लोगों के प्रति एक जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की भावना जागृत होती है। प्रिया कहती हैं कि लेकिन, कलाकार भी इंसान हैं। उसे भी जीवन केे सुख-दुख प्रभावित करते हैं। वह शून्य में सृजनात्मक काम नहीं कर सकता है। फिर, इस कोविड काल में जिस तरह से आॅन-लाइन कार्यक्रम और मुफ्त में कार्यक्रम पेश करने की होड़ लगी हुई है। वह निराशाजनक है। शास्त्रीय कलाओं और कलाकारों के प्रति हमारा समाज वैसे ही उपेक्षित रवैया रखता रहा। यह समय कलाकारों के लिए बहुत कठिन है। भरतनाट्यम नृत्यांगना प्रिया आगे कहती हैं कि पिछले दो-ढाई साल से लोग कठिन परिस्थितियों से जूझ रहे। युवाओं को कला और संस्कृतियों विभिन्न आयामों से जोड़कर, उनके जीवन को अच्छी दिशा दी जा सकती है। पर, समाज में भय और असुरक्षा का वातावरण है। मुझे लगता है कि इस दौर का सबसे बुरा असर युवाओं और मासूम बच्चों पर पड़ रहा है। आने वाले पंाच-दस साल बाद इनकी स्थिति क्या होगी? इनके बारे में सोचकर मैं चिंतित हो जाती हूं। क्योंकि, इन बच्चों का पढ़ना, लिखना, सीखना आमतौर पर रूक-सा गया है। कुछ लोग यह भी शिकायत करते हैं कि बच्चों को आॅन-लाइन क्लास के लिए मोबाइल या लैपटाॅप दिलाया गया। बच्चे क्लास के बजाय कार्टून शो या फिल्म देखते हैं। फिलहाल, लोगों की दिलचस्पी आॅन लाइन कार्यक्रमों के प्रति घटती जा रही है। ऐसा प्रिया वेंकटरामन मानती हैं। वह कहती हैं कि हमारी कलाएं हमारे जीवन का ही प्रतिरूप हैं। हमलोग नृत्य देखकर थकते नहीं थे। बल्कि, सारे दिन के भाग-दौड़ के बाद सांस्कृतिक आयोजन देखकर ताजगी महसूस करते थे। इसके अलावा, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर या हैबिटैट सेंटर के आयोजन के दिन क्लास नहीं रखती थी। मैं अपनी शिष्याओं के साथ वहां कार्यक्रम देखने जाती थी। ताकि, बच्चे लाइव प्रोग्राम देखकर सीखें और उसकी उर्जा को महसूस कर सकें। अब वह सब गतिविधि बीते जमाने की बात लगने लगी है। पता नहीं, आने वाले समय में इन आयोजनों के प्रति लोगों का रवैया कैसा होगा? इस संदर्भ में, समारोह से जुड़ी संस्था लीगेसी आॅफ आर्ट्स इन वैल्यू एजुकेशन की आर्ट मैनेजर मालविका बताती हैं कि जीवन के इस मुकाम पर मैं समाज और लोगों से अपने अब तक के अनुभव को साझा करना चाहती हूं। मुझे लगता है कि शैक्षणिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कला व संस्कृति के जरिए वैल्यू एजुकेशन छात्र-छात्राओं को दी जा सकती है। मैं चाहती हूं कि कला और कलाकारों के जीवन अनुभव का लाभ विद्यार्थियों और लोगों को मिले। कला और संस्कृति से जुड़ कर ही किसी का व्यक्तित्व विशिष्ट बनता है। मेरी कोशिश है कि मैं कला की समृद्ध विरासत से लोगों को परिचित करवा पाऊं।

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