भारतीय राजनीति के पथिक थे पंडित "दीनदयाल उपाध्याय" :-- आशीष रावत
मैट्रो मत न्यूज ( चेतन शर्मा नई दिल्ली ) इतिहास उन्हीं का स्मरण करता है जो अपने कार्यों से इतिहास का निर्माण करते हैं। कहना है मीडिया प्रमुख आशीष रावत का।
उन्होंने बताया कहा जाता है कि कुछ लोग महान पैदा होते हैं, कुछ लोग महानता अर्जित करते हैं और कुछ लोगों पर महानता थोप दी जाती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय इसमें से दूसरी श्रेणी के थे। न तो उन्होंने किसी समृद्ध परिवार में जन्म लिया था, न उनके पास सम्पत्ति थी और न ही उनके पास कोई उच्च पद था। इतने पर भी वे भारतीय राजनीतिज्ञों की अगली पंक्ति में पहुुंच गए। अनेक प्रसिद्ध नेता मृत्यु के बाद विस्मृति के गर्त में समा गए। पं. दीनदयाल वास्तव में सच्चे महान पुरुषों में से थे, जो मृत्यु के बाद और ऊंचे उठते हैं। देखने में पं दीनदयाल अत्यन्त ही सामान्य व्यक्ति प्रतीत होते थे, वे बाकी हर प्रकार से- मौलिक कल्पनाएं करने की दृष्टि से, अपने शब्दों की सार्थकता की दृष्टि से, अथक रूप से अनवरत् कार्य करने की क्षमता दृष्टि से एवं जीवन की निर्मलता की दृष्टि से एक असाधारण पुरुष थे। पं दीनदयाल भारत के सबसे तेजस्वी, तपस्वी एवं यशस्वी चिन्तक रहे हैं। उनके चिन्तन के मूल में लोकमंगल और राष्ट्र का कल्याण समाहित है। उन्होंने राष्ट्र को धर्म, अध्यात्म और संस्कृति का सनातन पुंज बताते हुए राजनीति की नई व्याख्या की। वह दलगत एवं सत्ता की राजनीति से ऊपर उठकर एक ऐसे राजनीतिक दर्शन को विकसित करना चाहते थे जो भारत की प्रकृति एवं परम्परा के अनुकूल हो और राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने में समर्थ हो। अपनी व्याख्या को उन्होंने ‘एकात्म मानववाद’ का नाम दिया। भारत की राजनीति में कांग्रेस की राष्ट्र-विघातकी और अदूरदर्शी नीतियों के परिणामस्वरूप पाकिस्तान का निर्माण होने के बाद कांग्रेस में सत्ता राजनीति की दौड़ प्रारम्भ हो गई। देश की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, औद्योगिक सभी क्षेत्रों में गिरावट के आसार प्रकट होने लगे। ऐसे क्षणों में राजनीतिक क्षेत्र में नए नेतृत्व की आवश्यकता गूंज उठी। इसी महती आवश्यकता की पूर्ति में जब 1951 में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में अखिल भारतीय जनसंघ के निर्माण का विचार किया जा रहा था तब पं दीनदयाल ने 21 सितम्बर, 1951 को लखनऊ में प्रादेशिक सम्मेलन बुलाकर प्रदेश जनसंघ की स्थापना की। इसके ठीक एक माह बाद 21 अक्टूबर, 1951 को दिल्ली में डॉ. मुखर्जी के नेतृत्व में अखिल भारतीय जनसंघ की भी स्थापना हुई। 1952 में जनसंघ का प्रथम अखिल भारतीय अधिवेशन कानुपर में आयोजित किया गया। पं दीनदयाल की संगठन कुशलता से जनसंघ का यह पहला अधिवेशन ही अत्यन्त सफल हुआ। इसी अधिवेशन में पं दीनदयाल को अखिल भारतीय महामंत्री का पद सौंपा गया जिसे उन्होंने जनसंघ के कालीकट अधिवेशन 1967 तक निभाया। कानपुर से कालीकट तक जनसंघ के शीर्ष स्थान पर डॉ. मुखर्जी, आचार्य रघुबीर जैसे अखिल भारतीय विद्वान विराजमान हुए किन्तु दुर्भाग्य से अल्पकाल में वे छिन गए। पं दीनदयाल ही ऐसे व्यक्ति थे जो इस रिक्तता के समय आशा और विश्वास के ज्योति-स्तम्भ बनकर मार्गदर्शन का दायित्व निभाते रहे। कश्मीर का आंदोलन हो या किसान-मजदूरों का मोर्चा, पंचवर्षीय योजना हो या सामाजिक गुत्थी, सभी स्थानों एवं कार्यों में पं दीनदयाल का मार्गदर्शन देश को प्राप्त होता रहा। पं दीनदयाल ने देश के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए गम्भीर सारयुक्त विचार-मंथन किया। अपने कर्मों के आधार पर ऊपर उठने का संदेश जन्म से लेकर मृत्यु तक उनके जीवन की प्रत्येक घटना में सतत् गंुजित हुआ है। कालीकट के अधिवेशन में उन्होंने सम्पूर्ण राष्ट्र को ‘चरैवेति-चरैवेति’ का जो संदेश दिया उसे उन्होंने स्वयं अपने जीवन में साकार कर लिया था। समस्याओं से भरे देश में सब प्रकार के समाधान निकाल सकने का विश्वास दिलाने वाला प्रकाश पुंज बुझ गया। सरल व्यवहार, सादा जीवन, उच्च विचार, प्रदीप्त अन्तःकरण और कर्मठता की मूर्ति सहसा विगलित हो गई। इसीलिए भारत-रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, ‘सूर्य ढल गया अब हमें तारों के प्रकाश में मार्ग खोजना होगा’। प्रजा समाजवादी नेता श्रीनाथ पै ने उन्हें गांधी, तिलक और सुभषाचन्द्र बोस की परम्परा की ‘एक कड़ी’ बताया। साम्यवादी नेता हीरेन मुखर्जी ने उन्हें ‘अजात-शत्रु’ की संज्ञा दी और आचार्य जे.बी. कृपलानी ने उन्हें ‘दैवी सम्पदा’ की उपमा दी। निःसंदेह पं दीनदयाल इतने नम्र और सरल थे कि उनकी महानता पहचान पाना कठिन था और वे इतने महान् थे कि उनके आसपास की हर वस्तु ध्येय को समर्पित थी। यही कारण है कि कांग्रेस के नेता एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके सम्पूर्णानन्द ने न सिर्फ उनके लेखों के संकलन ‘पॉलिटिकल डायरी’ का प्राक्कथन लिखा बल्कि उन्हें महान और भविष्य की राजनीति के लिए प्रेरणादायी नेता बताया है।आशीष रावत ( मीडिया प्रमुख, विधायक कार्यालय, लक्ष्मी नगर विधानसभा-58, दिल्ली)