बीमार पिता की जान बचाने के लिए युवती ने की किडनी दान

मैट्रो मत न्यूज ( नीरज पांडेय दिल्ली ) बुजुर्ग पिता की खराब किडनी आखिरी चरण में पहुंच गई तो 32 साल की बेटी ने अपनी बाईं किडनी दान कर उनकी जान बचाई। 62 वर्षीय रामनरेश निगम को हाइपरटेंशन और डायबिटीज की पुरानी बीमारी थी और वह क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के एडवांस स्टेज से जूझ रहे थे, इसलिए उन्हें तत्काल किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत थी। मरीज और दाता को मैक्स हॉस्पिटल साकेत में भर्ती कराया गया और उनकी चिकित्सा स्थिति जानने के लिए संपूर्ण जांच की गई। अंजलि निगम की किडनी पिता के लिए उपयुक्त पाई गई और अपनी किडनी दान करने के लिए राजी थी।

मैक्स हॉस्पिटल में यूरोलॉजी, रेनल ट्रांसप्लांट, रोबोटिक्स और यूरो—ऑन्कोलॉजी के चेयरमैन "डॉ. अनंत कुमार" ने बताया, 'कि हमारी टीम ने जनरल एथेस्थेसिया के तहत रोबोटिक लिविंग—डोनर रेनल एलोग्राफ्ट ट्रांसप्लांट करने का फैसला किया। ट्रांसप्लांट से पहले की संपूर्ण प्रक्रिया पूरी करने और कार्डियोलॉजी तथा साइकियाट्री द्वारा सहमति मिल जाने के बाद मरीज की ट्रांसप्लांट सर्जरी सफलतापूर्वक पूरी की गई। इसी तरह जनरल एनेस्थेसिया की मदद से बेटी की बाईं किडनी निकालने के लिए लेप्रोस्कोपिक डोनर नेफ्रेक्टोमी प्रक्रिया अपनाई गई जिसमें आपरेशन के बाद कोई प्रतिकूल परेशानी नहीं आई। डॉ. कुमार ने कहा, 'रोबोट की मदद से होने वाली सर्जरी ने आजकल पूरी दुनिया में सर्जरी का तौर—तरीका ही बदल दिया है। इस तरह की सर्जरी में न्यूनतम रक्तस्राव, तेज रिकवरी, अस्पताल में बहुत कम समय रहने की नौबत और सामान्य जीवन की ओर तेजी से लौटने का फायदा मिलता है। हमें समझना होगा कि दान की गई किडनी का शारीरिक गतिविधियों और क्षमताओं पर कोई असर नहीं पड़ता, बल्कि इससे मरीज का जीवनकाल बढ़ जाता है। रोबोटिक सर्जरी में सर्जन रोबोटिक आर्म की मदद से सर्जरी को अंजाम देते हैं। रोबोटिक सर्जरी में विशेष उपकरणों का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण रोबोटिक आर्म के अगले हिस्से पर लगे होते हैं। सर्जरी वाली जगह को बड़ा करके देखने के लिए उच्च परिशुद्ध कैमरा होता है। इसके अलावा इसमें बहुत ही छोटा चीरा लगता है जिसका निषान बिल्कुल नहीं या बहुत कम रहता है। इसमें रक्त की बहुत कम क्षति होती है और मरीज जल्द से जल्द स्वास्थ्य लाभ करता है। मरीज किसी भी बड़ी सर्जरी के बाद 24 घंटे के भीतर चलने-फिरने लगता है।

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