आज का विषय आयुर्वेद विरुद्ध एलोपैथी या एजेंडापैथी :- लेखक अमित द्विवेदी

मैट्रो मत न्यूज ( चेतन शर्मा दिल्ली ) जैसा की हम सब जानते है ईश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तो इंसान को सभी वस्तुएं उसने इसी धरा या धरती पर साथ मे दी। कोई भी दम्भ भरने वाला इंसान न कुछ लाया है न ले जा सकता है। यहां दिए हुए संसाधनों से ही हमारा जीवन जुड़ा हुआ है। इस तंत्र में ही हमारे शरीर निर्माण की सभी वस्तुए है जो हम ग्रहण करते है। बीमारी भी यही पैदा होती है इसीलिए इलाज भी यही होता है।
अब बात करते है आयुर्वेद की, जैसा की ऊपर लिखा है की ईश्वर ने सारे संसाधन यहीं प्रदान किये है। संसाधनों को प्राकृतिक रूप में इस्तेमाल करना और उसी प्राकृतिक रूप में बीमारियों के इलाज ढूँढना आयुर्वेद के अंतर्गत आता है। आयुर्वेद में विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां और पेड़ पौधे के रूप में प्राकृतिक रूप से मिलने वाले तत्वों का उपयोग कर बीमारियों को ठीक करने विचार है। यह विचार उसी क्रम में है की ईश्वर ने हमे सबकुछ दिया है बस उसका ज्ञान हो जाने पर हम बड़ी बड़ी प्रयोगशाला बनाकर धरती खोदकर मशीन लगाकर तत्वों का प्राकृतिक रूप बदले बिना उसे उपयोग कर प्राकृतिक सहचर से जीवित व स्वस्थ रह सकते है। आयुर्वेद शरीर मे प्रक्रिया को बल देता है एवं शरीर की क्षमता को विकसित करता है, यही कार्य होम्योपैथी में दूसरे रूप में होता है बस अंतर ये है उसमें इन उपयोगी वनस्पतियों के अर्क का उपयोग होता है। अब बात आती है मनुष्य के भगवान बनने के इच्छा की यहाँ से हमारा आधुनिक विज्ञान शुरू होता है। यह विज्ञान हर बात को परखना चाहता है। इसीलिए इसने शरीर को जाना और उसकी प्रक्रियाओं के रसायनिक क्रियाओँ का अध्ययन किया जिसमें उसे धरती में विद्यमान तत्व मिले। मतलब ये है के ये भी यही इसी धरती पर नये तरीके से खोज करने में सफल हुए। इन्होंने पाया की शरीर के तत्वों को नियंत्रित करने वाले तत्व यदि हम धरती से निकाल ले और बड़ी बड़ी प्रयोगशाला में बड़ी बड़ी मशीनों के साथ सालो प्रयोग करके इनके मिश्रण तैयार कर ले और उसे दवाओं के रूप में उपयोग करे तो भी मनुष्य ठीक हो सकता है। चूंकि यह ज्ञान नया था और पुराने ज्ञान आयुर्वेद का लोप हो रहा था कई वनस्पतियां लुप्त हो चुकी थी। बहुत से क्षेत्रों के पारिस्थिक तंत्र में बदलाव आ चुका था, इस एलोपैथ ने जोर पकड़ लिया। फिर इस सोच को मनुष्यों के सबसे प्यारे विचार "मैं महान मेरी खोज महान" का साथ मिला बस फिर क्या था शुरू हो गया महानता का खेल। शुरू हो गई एक ज्ञान को दूसरे ज्ञान के ऊपर महान बताने की कोशिशे जो आज हम देख रहे है। एलोपैथी एक ज्ञान है, आयुर्वेद एक ज्ञान है, होम्योपैथी एक ज्ञान है ये एक दूसरे से महान कैसे हो सकते है। अब बात करते है शुद्ध राजनीति की जो ईसाई मिशनरियों के लिए इस पके फल जैसे भारत देश जहाँ वे धर्मांतरण के रूप में गन्दा खेल खेलने में कोई न कोई तिकड़म लगाते जा रहे है उन्होंने इस बार भारत के ज्ञान आयुर्वेद, योग, अध्यात्म को निशाना बनाया जैसा की किसी आजकल के शब्द "टूलकिट" में था के योग को निशाना बनाओ इसने भारत की विश्व मे छवि बना दी है। बहुत से लोगो को योग से लाभ हुआ है इसीलिए लोग भारत के इस ज्ञान को महान बता रहे है। बस यही बात उन लोगो को चुभ रही है जो महानता का सारा ठेका रखकर दुनिया को यदा कदा कुछ चीजो में कुछ लायक मानते है। इसी क्रम में उन्होंने भारत के साथ भी यही करने का एजेंडा बनाया है। इसका कारण बस एक ही है मानसिक रूप से कुंठित बनाए रखना ताकि भारतीय कभी किसी बात को लेकर स्वयं के ज्ञान को लेकर गर्वित न हो सकें। इसी क्रम IMA के जयालाला की जो इसी महानता के चक्कर मे आयुर्वेद को नीचा और एलोपैथी को ऊंचा रखने की बात कर भारत के ज्ञान आयुर्वेद को दर्जा ही नही देना चाहते। वही दूसरी और वे जीसस के आशीर्वाद से लोगो के कोरोना से ठीक होने के मिशनरी स्टेटमेंट को देना नही भूलते क्योकि स्वयं को महान बनाने वाले खेल और धर्मांतरण के लिए यह बहुत जरूरी खाद पानी है। 

:- बस यही है आयुर्वेद और अन्य ज्ञान की आपसी लड़ाई :- अब आप ही निर्णय ले...

( लेखक अमित धर द्विवेदी की कलम से )

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