अभी रूपसी मेनका सी हो तुम :- गीतकार अमित पाठक

मैट्रो मत न्यूज :- गीतकार अमित पाठक

अभी रूपसी मेनका सी हो तुम...

हृदय जब तुम्हारा कोई तोड़ दे,

न हो जब गुजारा कोई छोड़ दे,

तब के लिए मैं बना हूँ प्रिये...

मेरा घर खुला है, प्रतीक्षा में तेरे शिकायत लिये,

"अभी तुम अजंता की मूरत बनी हो,

परस्तिश में तेरे सभी आयेंगे..

अभी रूपसी मेनका सी हो तुम,

सितारे गगन से चले आएंगे..

दर्पण तुम्हे जब उपेक्षित करे,

बुढापा जवानी को जब चित करे,

तब के लिए मैं बना हूँ प्रिये...

मेरा घर खुला है, प्रतीक्षा में तेरे इनायत लिये..

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