बेटी से बहु का सफर :- लेखिका मंजू मित्तल

 मैट्रो मत न्यूज :- 

एक आजाद पंछी की उड़ान थी

 एक कमरे से दूसरे कमरे तक चहचहाना

जैसे एक डाल से  दूसरी डाल तक

और भाइयों की प्यारी बहना 

लेकिन क़्या पता था सब पराया है 

वो घर का आँगन ,वो माँ का आंचल

वो बाउजी के गमछे की छाया 

वो भाइयों का दुलार 

एक पल में हर  रिश्ता बदल जाता है 

बेटी से बहू के सफर  मै  क्यों अस्तित्तव बदल जाता है 

अपनी पहचान ,अपने सपने 

सब ससुराल की मर्यादा में चुप जाते है

 सबकी पसंद, नापसंद का ख्याल रखना 

और अपनी पसंद को भूल जाना 

ससुराल के हर रिश्ते को बखूभी निभाना 

व मायके के रिश्तेको नजरअंदाज करना 

अपनी पसंद पर , नापसंद पर, सपनो पर

 उमीदो पर , प्रतिभाओं के पंखो पर 

ससुराल की अनुमति की मोहर लगाना 

वो नाजुक परी जैसी बेटी से 

सबकी उमीदो पर खड़ी उतरने वाली

 बहू बनना  -

बड़ा नाजुक होता बेटी से बहु का सफर तय करना-    

लेखक :- मंजू मित्तल


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