श्राद्ध व तर्पण पर आर्य चिंतन गोष्टी संम्पन्न "जीवित माता पिता की सेवा ही सच्चा श्राद्ध है" :- आनिल आर्य
मैट्रो मत न्यूज ( नीरज पांडेय दिल्ली ) केन्द्रीय आर्य युवक परिषद की ओर से श्राद्ध व तर्पण का सही स्वरूप पर आर्य चिंतन गोष्ठी का आयोजन किया गया। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि जीवित माता पिता की सेवा ही सच्चा श्राद्ध है जीते जी तो पानी नहीं पूछा और सेवा नहीं कि मरने के बाद भोज कराना यह सब पाखण्ड है। किसी मृत व्यक्ति के पास तो एक सुई भी नहीं जा सकती।हमें अपने माता पिता और बुजुर्गों की सेवा करके जीवित व्यक्ति को ही तृप्त करना चाहिए। बढ़ते हुए वृद्ध आश्रम सभ्य समाज पर कलंक हैं कि जिन्होंने हमे पाला पोसा बड़ा किया हम उनकी सेवा भी नहीं कर सकते, यह भौतिक वाद की आंधी,संस्कारों की कमी, बदलते परिवेश के कारण हो रहा है।जब तक शिक्षा अर्थ पूर्ण व संस्कारवान नहीं होगी तब तक सारी उन्नति व तथाकथित प्रगति बेमानी है और अधूरी है।यह सब पारिवारिक संस्कार व शिक्षा की कमी के कारण हो रहा है। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद उत्तर प्रदेश के प्रान्तीय महामंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि सत्य को श्रत् कहते हैं,उस श्रत् को जिस क्रिया से ग्रहण किया जाता है उस सत्य क्रिया का नाम श्रद्धा है।इस श्रद्धा की भावना से जो कर्म किया जाता है उस पवित्र कर्म का नाम श्राद्ध है।पितर नाम मृतकों का नहीं होता अपितु जीवितों का है।जैसे प्रज्ज्वलित अग्नि में ही आहुति लगती है बुझने पर नहीं उसी प्रकार जीवितों को ही श्राद्ध तर्पण रूप हमारी सेवायें प्राप्त हो सकती हैं मृतकों को नहीं।अतः सत्य सनातन वैदिक धर्म के प्रचार प्रसार के लिये आर्ष ग्रंथों के माध्यम से अन्धविश्वासों से बचो और सत्य को धारण करो। विशिष्ट अतिथि आचार्य महेन्द्र भाई ने कहा कि श्रद्धा के साथ जो कार्य किया जावे वह श्राद्ध कहलाता है और तृप्त करने का नाम तर्पण है जीवित पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना एक सतत क्रिया है।अतः हम प्रण करें कि हम अपने जीवित माता-पिता दादा-दादी नाना-नानी सच्चे धर्मात्मा परोपकारी विद्वानों का श्रद्धा पूर्वक सम्मान करते हुए भोजन वस्त्र आदि से तृप्त रखेंगे जिन्होंने जन्म देकर पालन, पोषण व शिक्षित किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रधान शिक्षक सौरभ गुप्ता ने कहा कि पाखण्डों से बच कर प्रतिदिन जीवित पितरों की सेवा करते हुए ऋषियों के द्वारा निर्दिष्ट पितृयज्ञ करना चाहिये। यही वैदिक धर्म का वास्तविक श्राद्ध है। गायिका संगीता आर्या,राजश्री यादव,दीप्ति सपरा,संध्या पांडेय, उषा मलिक, उर्मिला आर्या, बिन्दु मदान, प्रतिभा सपरा आदि ने ओजस्वी गीतों से समा बांध दिया। मुख्य रूप से समाज सेवी डॉ आर के आर्य, आनन्द प्रकाश आर्य(हापुड़), वीना वोहरा, देवेन्द्र भगत गीता गर्ग, के एल राणा, नरेश प्रसाद, यज्ञवीर चौहान, देवेन्द्र गुप्ता आदि उपस्थित रहे।