किसका श्राद्ध कौन करे.. लेखक :- लाल बिहार लाल
मैट्रो मत न्यूज ( लेखक- लाल बिहार लाल ) पिता के श्राद्ध का अधिकार उसके पुत्र को ही है किन्तु जिस पिता के कई पुत्र हो उसका श्राद्ध उसके बड़े पुत्र, जिसके पुत्र न हो उसका श्राद्ध उसकी स्त्री, जिसके पत्नी नहीं हो, उसका श्राद्ध उसके सगे भाई, जिसके सगे भाई न हो, उसका श्राद्ध उसके दामाद या पुत्री के पुत्र (नाती) को और परिवार में कोई न होने पर उसने जिसे उत्तराधिकारी बनाया हो वह व्यक्ति उसका श्राद्ध कर सकता है। पूर्वजों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध शास्त्रों में बताए गए उचित समय पर करना ही फलदायी होता है। महाभारत के प्रसंग भी इस संदर्भ में एक कहानी है- कर्ण को मृत्यु के उपरांत चित्रगुप्त ने मोक्ष देने से इनकार कर दिया था। कर्ण ने कहा कि मैंने तो अपनी सारी सम्पदा सदैव दान-पुण्य में ही समर्पित की है, फिर मेरे उपर यह कैसा ऋण बचा हुआ है? चित्रगुप्त ने जवाब दिया कि राजन, आपने देव ऋण और ऋषि ऋण तो चुका दिया है, लेकिन आपके उपर अभी पितृऋण बाकी है। जब तक आप इस ऋण से मुक्त नहीं होंगे, तब तक आपको मोक्ष मिलना कठिन होगा।इसके उपरांत धर्मराज ने कर्ण को यह व्यवस्था दी कि आप 16 दिन के लिए पुनः पृथ्वी मे जाइए और अपने ज्ञात और अज्ञात पितरों का श्राद्धतर्पण तथा पिंडदान विधिवत करके आइए। तभी आपको मोक्ष यानी स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी। इस पक्ष में आप अपनों पितरों का तर्पण घर पर भी कर सकते हैं या देश में लगभग 65 ऐसे स्थान है जिनमें हरिद्वार, नासिक, गया, बह्र्मकपाल, कुरुक्षेत्र, उज्जैन, अमरकंटक आदि जहां जाकर कभी भी पिण्डदान कर सकते है। इन 65 में 4 महत्वपूर्ण है- गया, नासिक ,बह्मकपाल (बदरिनाथ) औऱ उज्जैन है। पर इन चारों में गया जो विष्णु की नगरी है सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। गया में देश विदेश से लोग आते है अपने पितरो के तर्पण एँव पिण्डदान कराने। यह पितरों के मोक्ष का पावन पक्ष है। आपके तर्पण से पूर्वज खुश होते है औऱ आपके यश की श्रीवृद्धि में अहम योदगान है।