संस्कार भारती की गाजियाबाद इकाई के संयोजक डा.जयप्रकाश मिश्र की ओर से एक इंद्रधनुषी काव्य गोष्ठी सम्पन्न..
मैट्रो मत न्यूज (चेतन शर्मा दिल्ली ) संस्कार भारती की गाजियाबाद इकाई के संयोजक डा.जयप्रकाश मिश्र की ओर से एक इंद्रधनुषी काव्य गोष्ठी मीट गूगल डाट काम पर सम्पन्न हुई। इस आयोजन की अध्यक्षता तड़िता काव्य के प्रवर्तक और वरिष्ठ गीतकार सच्चिदानंद तिवारी शलभ ने की कार्यक्रम के आयोजन, संचालक व वरिष्ठ कवि चंद्रभानु मिश्र ने वाणी वंदना के उपरान्त, संस्कार भारती का बहुत सुंदर परिचय संस्कृत काव्य में दिया। आपने अध्यक्षीय काव्यपाठ के पूर्व भी एक गीत पढ़ा- चारों तरफ आग की लपटें, मचा हुआ कोहराम जी. कवयित्री गार्गी कौशिक ने राष्ट्रीय एकता के सम्बंध में कहा-ना मैं हिंदू, ना मैं मुस्लिम, मैं तो बस इंसान हूं.. अशोक गोयल ने नटराज भगवान शिव की शुभ तिथि का उल्लेख करते हुए- जय महाकाल जय महाकाल, जो पाप शाप का हर्ता है, जो युग परिवर्तन करता है,यह पंक्तियां पढ़ीं. कवि विनोद शर्मा ने वर्षा आधारित गीत पढ़ा -उमड़, घुमड़ मेघ आये, कैसे हैं, वे मुझे बतायें.... कन्हैया लाल खरे जी ने दो गीत पढ़े, पहला-सर्वधर्म सद्भाव हमारा, संस्कृति बहुत पुरानी है, और दूसरा गीत-दीप जल कर बुझे, बुझ के जलते लगे, का वाचन किया कवयित्री डा.अंजू अग्रवाल ने गाया- क्या लिखूं सावन पर कविता, जब तुम नहीं. इंजीनियर कवि अशोक राठौर ने मुक्तक पढ़ा- त्रिपुरारी हैं जग के स्वामी, रखते सब भक्तों का ध्यान. इसके बाद आपने कहा- अस्मत लूट रहे दुष्शासन, अब तो आ जाओ भगवान. कवि मान सिंह बघेल ने कहा-राम की कृपा है, खुदा की खुदाई है. भारत माता की जय बोलो, हिन्दू मुस्लिम तैयारी है. कवयित्री पुष्पाअग्रवाल ने भी अपनी एक गज़ल पढ़ी. कवि सुरेन्द्र ने- नमस्ते से कोई दुखी नहीं होता... (२)गले वो मुझे इस तरह मिला है, पढ़ा. मनोज डागा मौजू ने पढ़ा- हाथ जोड़ कर वंदन होंगे.... (एवं) धरती तो क्या नभमंडल पर भगवा लहराएगा. सुकवि ओंकार त्रिपाठी ने नयनों की सुंदरता पर जो मोहक गीत प्रस्तुत किया, उसकी बानगी देखिए- जिनके दर्शन करके बदला, दर्शन क्रम मेरे जीवन का. कैसे मैं एहसान चुकाऊं, बोलो उस चंचल चितवन का...कवयित्री सोनम यादव (वाराणसी निवासिनी) ने वर्षा पर जो मनोहारी गीत गाया, उसकी कुछ झलक इन शब्दों में मिली- बरखा रिमझिम रिमझिम बरसो, बरखा छम छम छम छम बरसो. इसके बाद क्रम आया वाराणसी की ही कवयित्री सविता कुमारी का, आपने रक्तदान पर और स्वपरिचय में कहा-मैं नारी हूं, हां मैंने ही हूं... काव्य समारोह के शिखर से तड़िता काव्य के सूत्रपात कर्ता एवं गीतकार सच्चिदानंद तिवारी शलभ ने राष्ट्रवंदना के इस गीत को पढ़ कर इस काव्य समारोह को अगले आयोजन तक के लिए स्थगित किया. पंक्तियां दृष्टव्य हैं- दिन में दिनकर, रात हिमकर जगमगा जाये, भू -गगन को,इस वतन को,त्रिपथगा गाये..