हंडियों की तलछटी में मौन था "पायवट पर प्रश्न जैसे गौण" :- लेखक विनय विक्रम सिंह # मनकहि

मैट्रो मत न्यूज  (चेतन शर्मा दिल्ली )


🌹 समय से दो-टूक 🌹 जब समय गुजरा लिये पगडंडियाँ। ताड़ ऊँचे और खाली हंडियाँ।।


हंडियों की तलछटी में मौन था, पायवट पर प्रश्न जैसे गौण था। ग़र्द के गुब्बार जड़ में थे भरे। छाँव की सिमटी-सिकुड़ती मंडियाँ।१।


छोड़ कर आँखें वहीं उस झाड़ पर, ऊँघती परछाईं का मन ताड़ कर। ऊन हर जड़ से उतारा मूँड़ कर, ग़र्द से बुन लीं हजारों ठंडियाँ।२।


ले अंगीठी हाँड़ लड़ते लाड़ से, मुख किलकते एक कलछुल माड़ से। लाल चूल्हा राख उगले रात-दिन, शाम ढोती हर सुबह कुछ कंडियाँ।३।


पाँव सूखा फट बिवाई हो मरा, हर क़दम इक कार्यवाही हो सरा। बूँद छींटे बन हवा में घुल गयी, हँस रही हैं तीन रंगी झंडियाँ।४।


- विनय विक्रम सिंह #मनकही


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