स्वयं प्रश्न सा बन समर में खड़ा "अकेले लड़ा है अकेले अड़ा" अभिमन्यु :- लेखक विनय विक्रम सिंह "मनकहि"

🌹🌸 अभिमन्यु 🌸🌹


-लेखक विनय विक्रम सिंह # मनकहि-


मैट्रो मत न्यूज ( चेतन शर्मा दिल्ली )


स्वयं प्रश्न सा बन समर में खड़ा। अकेले लड़ा है अकेले अड़ा।। झुकी गर्दनें व्योम की थल तलक, बुझे स्वर झुकाएँ सदी की पलक। मगर हाथ अंधड़ लिये रक्त के, रणांगण में अभिमन्यु खुद से लड़ा। स्वयं प्रश्न सा बन समर में खड़ा। अकेले लड़ा है अकेले अड़ा।१।


ये मन दावानल स्वार्थ का द्वेष का, वितस्ता सा प्रसृत घृणित भेष का, भँवर देह के लालसा के बना, लिये प्रेत अनगिन विभुक्षित नड़ा, स्वयं प्रश्न सा बन समर में खड़ा। अकेले लड़ा है अकेले अड़ा।२।


तनी देह रज्जु करे हस्तगत, भरे काम कंचन विक्षोभित स्वगत, विजय माल आकण्ठ नश्वर सजा, भुवन मोहिता वीर मण्डित बड़ा, स्वयं प्रश्न सा बन समर में खड़ा। अकेले लड़ा है अकेले अड़ा।३।


भरा भस्म से है तुला रिक्त है, लौकिक क्षुधा दृश्य अति तिक्त है, गहे शस्त्र सम्बन्ध को काटने, मगर संशयी वर्तुलों में पड़ा, स्वयं प्रश्न सा बन समर में खड़ा। अकेले लड़ा है अकेले अड़ा।४।


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