कोरोना से जंग में वृक्ष आपके संग... लेखक अमित पाठक
मैट्रो मत न्यूज ( लेखक अमित पाठक बहराइच ) वैश्विक महामारी के दिनों में आज विश्व पर्यावरण का दिन अहम है , आज ही के दिन यानी 5 जून को इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी और 5 जून 1974 को पहला संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया । अब किताबी बाते छोड़कर बात करते है मानव जन जीवन की, जो एक हद तक प्रभावित है, एक ऐसी अबूझ पहेली है जिसका रंगमंच पर किरदारों द्वारा चित्रण प्रस्तुत किया गया और होता रहता है, रोजमर्या की जिंदगी में पौधरोपण का समय नहीं, दिनचर्या में आलस्य कुंडली मारकर बैठ गया अब योगाभ्यास भी सम्भव नहीं...प्रदूषण और दूषित वातावरण की चर्चा हाफ कटिंग चाय के साथ कर सकते है पर एक पौधा लगाने की सोंच को अंतर्मन में स्थान देना शायद सम्भव नहीं , इन्हीं मानसिकताओं और महत्वाकांक्षाओ की दौड़ में सबसे आगे मानव प्रकृति को भी चुनौती दे बैठा परिणाम ....आज कोरोना से बचने का रास्ता ढूंढ रहा है, बना बनाया रास्ता था जिस पर कभी चले नहीं जब बाज़ी हाथ से निकल गयी तो ...बाजार में पंचतुलसी और गिलोय का आर्टिफिसियल काढा ढूंढ़ रहे है...बहुत विचार किया तो आगंतुक लुभावन गमले में प्लांट का नमूना लगा लिया सेल्फी के लिए...अरे साहब उसी में तुलसी का एक पौध लगाते तो आज पंचतुलसी खरीदने की नौबत नहीं आती, प्रकृति ने चोट कहाँ दी अभी तो सिर्फ मिज़ाज़ बदला है क्योंकि पहले सभ्यता खोई फिर संस्कृति को पाश्चत्य में परिवर्तित कर दिया...सचेतने की आवश्यकता है अन्यथा की दृष्टि में तो कोरोना जैसे उत्पाती घात लगाये बैठे ही है...जरा याद करिये बुजुर्गों द्वारा लगाई गई महाऔषधि नीम, जिसे छूकर हवा का झोंका यदि रोटी पर से गुजर जाए तो कड़वी हो जाती थी कहाँ गयी वो नीम, लगभग हर घर से खत्म हो चुकी तुलसी की जगह चॉकलेट पाउडर ने ले ली, हुनर हो तो चाय पाउडर से बेतरीन तुलसी की खुशबू में मिलेगी ...अंग्रेजी में गुड़ मॉर्निंग नही जानते थे बुजुर्ग लेकिन आज जो कुछ पर्यावरण सुरक्षित बचा है श्रेय उन्ही को जाता है बाकी तो प्रदूषण के जन्मदाता है । जरा विचार करें कोरोना-वायरस के चक्र को रोकने के लिए विश्व के अधिकतर देशों ने तालाबंदी करने का फैसला लिया। तालाबंदी के अंतर्गत नागरिकों को घर पर ही रहने के आदेश दिए गए । साथ ही वाहन और कारखानों पर भी रोक लगाई गई। इन नियमों के कारण विश्व के अनेक देशों में प्रदूषण स्तर की निरंतर कमी देखी जा रही है। चीन में जनवरी से ही कार्बन उत्सर्जन में 25% कमी देखी गई है। अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में कार्बन मोनो-ऑक्साइड की मात्र 2019 की तुलना इस साल में आधी पाई गई है। भारत की राजधानी दिल्ली में तालाबंदी के बाद वायु प्रदूषण स्तर 49% कम पाया गया है। अभी भी न सचेते तो अपने जीवन का एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ... "वृक्षों के समूह ने इस कदर घेर रखा है हमे साहब...कोरोना तो क्या समूचा वुहान आकर दस्तक दे तो दहलीज पर निशान को अपने आने का पश्चाताप होगा ... स्वागत में नीम पर चढ़ी महा औषधि गुर्च ( गिलोय) होगी तो गले मिलने के लिए तुलसी वन की अमोध शक्ति रोग प्रतिरोधक क्षमता समेटे मदमस्त बेताब बाँह पसारेगी... पहरेदार के रूप में शमी का अद्भुत वृक्ष सदैव शिव तांडव हेतु मोर्चे पर मुस्तैदी से तत्पर है जिसे इन्ही वायरसों का इंतज़ार रहता है.. नवमालिकाये पुष्पों की कतारों से निकलने वाली सुगंधित महक वायरस को अचेतना में पहुंचाने हेतु पर्याप्त है...विटामिन सी भरे फलों के हर प्रकार वृक्ष कोरोना से लड़ते है डरते नही साहब......डर तो इन्हें लकड़हारों से लगता है और वनमाफ़ियों के आगे हारे है । इन्हें मन के सच्चे भाव से और अपनत्व के दो बूँद से सिंचित कीजिये...आपको सृष्टि की समस्त बीमारियों से सुरक्षित रखने हेतु प्राचीन युग से ये समर्पित है....यही संजीवनी है और संजीवनी पर कोरोना क्या पूरा चीन अभी और रिसर्च करे । इच्छाशक्ति बढ़ाये , वृक्ष लगाये और इनकी सप्रेम सेवा करे । संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यावरण दिवस के महत्व को समझे और पड़ोसी को जरूर समझाये । कोरोना की लड़ाई में वृक्ष आपके साथ है ।