क्या पहले बाजारों में मिलने वाला दूध सिंथेटिक था.. :- संतोष कुमार मिश्रा

मैट्रो मत न्यूज ( अमित पाठक बहराइच ) कहते है हर किसी की कीमत मांग के अनुसार घटती बढ़ती है या कभी कभी किसी वस्तु की पैदावार अचानक बढ़ जाये पर उसको काफी दिनों के लिए स्टोर न किया जाना संभव न हो तो उसकी कीमत कम होना लाजमी है।



जैसे लॉक डाउन के दौरान आज कल सुना जा रहा है कि अबकी बार सब्जी के भाव पिछले वर्ष की अपेक्षा काफी कम है उसका एक ही कारण है "लॉक डाउन" क्योकि शादी ब्याह व अन्य मांगलिक कार्यक्रम के साथ साथ होटल व ढाबा रेस्टोरेंट्स भी बंद है।जिससे सब्जी की पैदावार तो हो रही है पर उस अनुपात में खपत नही है।क्योकि किसानों ने पिछले साल की बिक्री देखकर इस वर्ष अधिक मात्रा में सब्जी की फसल लॉक डाउन से पहले खेतों में लगा दी थी,इसलिए खपत के अपेक्षा पैदावार ज्यादा होने के कारण सब्जी सस्ती है। इसी प्रकार मांगलिक कार्यक्रमों, शादी ब्याह,होटल, ढाबा आदि पर प्रतिवर्ष काफी मात्रा में दूध की बिक्री होती थी जिससे दूध की खपत भी ज्यादा होती थी,इसीलिए लोग इस समय दूध की पैदावार कम बताकर दूध को मंहगे दामो पर बेंचते थे। पर सोंचने की बात तो यह है कि वर्तमान समय मे लॉक डाउन के चलते जब सभी होटल,ढाबा,रेस्टोरेंट,मांगलिक कार्यक्रम आदि बंद है।जहाँ पहले लाखो लीटर दूध की सप्लाई थी,जिससे पनीर काफी दही खोया आदि बनता था पर अचानक यह सब बंद हो गए,या यूं कहें कि दूध से जुड़े सारे ब्यवसाय लगभग बंद हो चुके है।जबकि केवल घरों में ही दूध की सप्लाई उसी मात्रा में हो रही है जैसे पहले होती थी,पर बड़ा सवाल यह कि वह दूध अब कहाँ जा रहा है जो होटल ढाबो रेस्टोरेंट आदि में जाता था।जबकि दूध एक ऐसा तरल पेय है जिसको ज्यादा दिन रोका भी नही जा सकता।जबकि पराग,अमूल जैसी बड़ी कंपनियों में भी दूध बहुतायत मात्रा में देखने को मिलते थे,पर वहाँ भी अब उतने मात्रा में दूध देखने को मिल रहा है और न ही इन कंपनियों के दूध ज्यादा मात्रा में बिक भी रहे है।ऐसे में बड़ा सवाल यह कि जब सारे जगहों पर दूध की मांग कम हो गयी तो रोज इतने मात्रा में निकलने वाला दूध आखिर गया कहाँ।जो हमे यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि कही हम लोग सिंथेटिक दूध तो नही पी रहे।क्योकि जो गाय भैंस लॉक डाउन लगने से पहले जितना दूध देती थी स्वाभाविक है कि वह अभी भी उतना ही दूध दे रही होंगी,पर जब सारे होटल,रेस्टोरेंट, शादी पार्टी,चाय की दुकान,आदि बंद है,ऐसे में इन स्थानों पर खर्च होने वाला दूध एकाएक कहाँ चला गया।जो बरबस हमे सोंचने पर मजबूर कर देता है कि हमारे बच्चे व परिवार को शादी पार्टी व दुकानों पर मिलने वाली पनीर मिठाई,आदि सब दुग्ध निर्मित खाद्य पदार्थ अधिकतर मिलावटी दूध रूपी जहर से ही निर्मित हो रहा था।इससे एक बात और साफ हो रही है कि इन मिलावट के दलदल में अमूल पराग जैसी बड़ी कंपनियां भी पीछे नही रही होंगी,क्योकि जब देहात हो या शहर कही भी दूध बहुतायत मात्रा में नही देखने को मिलता तो इन लोगो को कैसे मिलता रहा होगा,इससे मालूम पड़ता है कि दूध का ब्यापार करने वाली नामी गिरामी कंपनियां भी कंपनी के नाम पर मिलावटी (पाउडर)दूध का ब्यापार कर रही थी,यह कोई हम एक कस्बे,तहसील,मण्डल,जिला,प्रदेश की बात नही कर रहे है हम बात कर रहे है पूरे हिंदुस्तान का चूंकि लॉक डाउन तो पूरे हिंदुस्तान में चल रहा है।क्योकि कई चैनलों व समाचार पत्रों में देखा व पढ़ा गया कि सब्जी की अधिक पैदावर होने के कारण किसान अपने फसल को बाहर की मंडियों में नही भेज पा रहा जिससे कई किसानों ने खराब हो रहे सब्जियो को तालाबों नदियों व खेतों में फेंक रहे है।पर आज तक किसी समाचार पर व चैनल में नही दिखा की इस समय दूध खपत से ज्यादा हो रहा है जिससे पशुपालकों व डेयरी वालों ने नदी व तालाबो में फेंक दिया हो।यही बात खटक रही है कि क्या सचमुच हम लोग नकली दूध(पाउडर वाला सिंथेटिक दूध)पी रहे थे।लग रहा है कि असली दूध का टेस्ट ही भूल चुका है इसलिए लोग यह भी नही जान पाते कि हम आज जो दूध पी रहे है वो है वास्तविक, या पहले जो पी रहे थे वो था असली? सोचने पर मजबूर कर दे रहा है ।


( लेखक संतोष कुमार मिश्रा )


 


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