कोरोना काल का महा-विस्थापन "एक अवसर या संकट" :- लेखक कपिल देव

मैट्रो मत न्यूज ( लेखक कपिल देव ) चीन के एक अनाम शहर वुहान से चलकर पूरे विश्व में कोरोना नाम की महामारी ने मानवता के समक्ष अभूतपूर्व संकट खड़ा कर दिया है. संसार के अत्यंत विकसित देशों से लेकर विकासशील देशों के समक्ष मानवीय एवं आर्थिक संकट भयावह रूप में सामने आ खड़ा हुआ है. दुनिया में अब तक एक लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है एवं 50 लाख से अधिक व्यक्ति संक्रमित है. संसार की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर है. बेरोजगारी की अपूर्व समस्या आसन्न है. इन सबके बीच भारत में मजदूरों की अपने गृह-राज्यों में वापसी का एक सैलाब सा आ गया है. यदि देखा जाय तो पूरे भारत को 70 प्रतिशत से अधिक मजदूर उत्तर भारत के तीन – चार राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड एवं मध्य प्रदेश के हैं. जनशक्ति की इतनी बड़ी वापसी कभी देखी नहीं गयी है. तत्काल समस्या इनकी जांच करके इनका कोरोना संक्रमण का पता लगाना तथा इनके इलाज करने की है. इसके पश्चात इन्हें कोई न कोई रोजगार में लगाना. कई राज्य की सरकारों ने इन विस्थापित / वापस आयें मजदूरों को उनकी कार्य कुशलता के अनुसार पंजीकरण करके उनको किसी उपयुक्त कार्य में लगाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया है. उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री ने इन मजदूरों को अपनी एक निधि बताया है तो बिहार की सरकार ने भी इन मजदूरों को कुशलता के आधार पर कार्य देने की बात कही है. अब यह प्रश्न अवश्य उठेगा की इतना समय बीत जाने पर भी इन प्रदेशों के कामगार सुदूर प्रान्तों में अकुशल मजदूरों की तरह काम करने को बाध्य क्यों है. कुशल कर्मी कहीं पर भी, यहाँ तक की विश्व के किसी कोने में काम करके पुनः अपने घरों में आते रहते है. पर इन असहाय एवं अकुशल श्रमिको की इस दुर्दशा की लिए कौन जिम्मेदार है. जब सरकारी नीतियाँ बनती हैं तो इन मजदूरों को किस वर्ग में रख कर केंद्र एवं राज्य सरकारें अपनी आर्थिक एवं सामाजिक नीतियाँ बनाती है. क्या सरकारों को एक विशाल वर्ग का डाटाबेस उपलब्ध है कि कौन से लोग किस प्रकार का कार्य करते हैं. उनकी बेहतरी को राज्य सरकारे क्या कर सकती हैं. केंद्र सरकार राज्यों को यह सुझाव दे सकती है कि इन अकुशल श्रमिकों को कुशलता की किस प्रकार वृद्धि करे कि इनका जीवन सम्मानजनक हो सके और इनको अत्यल्प लाभ या थोड़ी सी अधिक मजदूरी के लिए के लिए अपना गृह-प्रान्त न छोड़ना पड़े. कोरोना के कारण उपजी इस मानव त्रासदी का उपयोग भारत के अल्पविकसित राज्य किसप्रकार करेंगे यह एक अवसर है. प्रान्तों के विभिन्न विकास परियोजनाओ में इन मजदूरों का समायोजन सूचीबद्ध तरीके से करके भविष्य में भी उनके लिए कल्याणकारी योजनाओं का दरवाजा खोलें. वास्तव में ये वों लोग है जिनको सरकारों की योजनाओं का न तो लाभ मिलता है न ही उसकी समुचित जानकारी भी. अपने क्षेत्र में ही रोजगार दे कर उनकी समृद्धि तो बढ़ेगी ही उनका आत्मसम्मान भी बढेगा. जिस प्रकार अकुशल मजदूरों का अपमान या उपेक्षा अन्य प्रान्तों में होती है उसकी चर्चा यहाँ व्यर्थ है. इस लेखक का हेतु यही है की स्वत्व की पहचान का घोष लगाने वाले विभिन्न राजनितिक दलों के किस कोने में ये मजदूर उपयुक्त हो सकते हैं इस पर वे जरूर विचार करें. इस बीच यह भी आवश्यक हो जाता है की जिन उद्योगों को इस प्रकार के मजदूर चाहिए वे बड़े शहरों में क्यों लगे है. इनको देश के आतंरिक भागो में क्यों नहीं लगाया जा सकता है. जब गाँव से साग-सब्जी उगा कर बड़े शहरों में भेजी जा सकती है तो इन उद्योगों के उत्पादों को प्रान्त एवं देश के शहरों में तेजी से क्यों नहीं भेजा जा सकता है? जो उद्योग श्रमबहुल प्रकृति के है, उन उद्योगों को श्रम-सुलभ क्षेत्रों में लगाया जाय, उनके उत्पादों को खपत केन्द्रों एवं मंडियो में द्रुत गति से भेजा जाय. अब एक महत्त्वपूर्ण तत्व आता है की उद्योगपतियों की सुरक्षा एवं कानून व्यव्स्था का. कानून व्यवस्था ठीक न होने के कारण इतनी अधिक समस्या आती है की उतनी समस्या न तो उद्योग लगाने में आती है, न ही उत्पादों को खपत केन्द्रों पर भेजने की. स्थानीय नेता-अफसरों की मिलीभगत से उगाही करने वाली तत्वों से उद्योगपतियों एवं निजी-सरकारी क्षेत्र के अधिकारीयों को सुरक्षा एक अति संवेदनशील प्रश्न है. बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, आदि राज्यों में यह समस्या विकराल है. इसका अनुभव उद्योग धन्धों के सभी तबकों को होता है. राज्य चूंकि पुलिस -प्रशासन के मूल में है अतः उनको ही यह सुनिश्चित करना होगा कि कानून व्यवस्था किस प्रकार सुधारे. यदि युद्योगपति, कंपनियों के अधिकारी कर्मचारी तथा उनके छोटे आपूर्तिकर्ता अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हैं तो देश के एवं पिछड़े प्रान्तों में उद्योगों को बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा. अन्तराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी कोरोना के कारण नवींन परिवर्तन देखने को मिल रहा है. चीन लगभग पूरे विश्व के उत्पादन का केंद्र बना हुआ था. उसके सस्ते मजदूर, विशाल बाज़ार, श्रम कानून का लगभग एक पक्षीय (कारखाना मालिकों के) झुकाव के कारण चीन सब पर भारी था. कोरोना महामारी के कारण चीन पर कई आरोप लग रहे हैं कि उसने जान बूझ कर विश्व को इस महामारी के चपेट में डाला एवं ढेर सारे तथ्यों को छुपाया. यदि ऐसा न होता तो सावधानी बरत कर दुनिया के देश इससे बच सकते थे या इतनी धन जन हानि न होती. चीन पर यह आरोप किंचित भारत को लाभ पंहुचा सकते हैं. पश्चिमी देश, जिसमे अमेरिका भी शामिल है, उन्होंने भारत को उत्पादन केंद्र बनाने का फैसला किया है. भारत अपने सुशिक्षित जनशक्ति एवं बड़े बाज़ार के कारण इन देशों के आकर्षण का बिंदु बन सकता है. भारत के अति पिछड़े राज्यों के लिए कोरोंना भविष्य में एक आधार बिंदु का काम करेगा. अन्य प्रान्तों में गए मजदूर लौट रहे हैं. उनको यथोचित काम दे कर पिछड़े राज्य उनके गुणवत्ता-पूर्ण कार्यों या श्रम को विकास कार्यों में निवेश करके गति तीव्र कर सकेंगे. यहाँ पर राज्यों की नौकरशाही अति-सक्रियता से काम करके इन श्रमिको तथा तकनीशियनो आदि को समुचित काम देने का प्रबंध करके इसका अधिकतम लाभ उठाया जा सकेगा. इनका एक विपरीत प्रभाव विकसित राज्यों पर भी पड़ने की सम्भावना है. इन राज्यों को सस्ते एवं अरक्षित श्रमिको का दोहन करने का अवसर न मिल सकेगा. इस प्रकार श्रमिको पर लागत बढ़ेगी. इस आपदा के कारण कल्याणकारी राज्य की अवधारणा भी बदलेगी. जो श्रमिक या कार्यकुशल मजदूर उद्योगधंधे के सबसे निचले पायदान पर है, उनकी सामाजिक सुरक्षा, आवास, बीमा, स्वास्थ्य आदि पर नए सिरे से विचार करके लागू करना पड़ेगा. आपदाग्रस्त समय में तीव्रगति से एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित पहुचने-पहुचाने की व्यस्था भी देखनी-करनी पड़ेगी. परोपकारी संस्थाओं, गैर-सरकारी संगठनो (NGO) की भूमिका पर भी विचार करके इनकी सीमायें तय करनी पड़ेगी, इनकी क्षमता पहचान कर भूमिका भी तय करनी पड़ेगी. इस कोरोना आपदा में जगह- 2 स्वयंसेवी संगठनो ने महती भूमिका निभायी है एवं विस्थापित मजदूरों की पीड़ा कम करने में सहायता की है. भविष्य में यह देखना रुचिकर होगा कि मजदूरों के पुनरस्थापन को किस प्रकार लागू किया जाय जिससे न तो मजदूर और न ही उद्योग घाटे में रहे. मजदूरों के लिए शहरों में श्रमिक आवास बनाने से लेकर उनके स्वास्थ्य एवं न्यूनतम सेवाशर्तों को किस प्रकार लागू किया जायेगा. मजदूरों के बच्चों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा का प्रबंध कैसा रहेगा. यह तो निश्चित है की बड़े शहरों में पहले की तरह श्रम सुलभता नहीं रहेगी. पर यह स्थिति भी ठीक नहीं क्योकि कई ऐसी परियोजनाए है जो श्रम बहुल होती है. यदि उक्त बातों का ध्यान रखा जायेगा तो भारत विश्व का उत्पादन केंद्र बन सकता है. कोरोना संकट के कारण महिला श्रमिकों की तरफ ध्यान जाना एक समीचीन विषय हो सकता है. इस अवसर को ध्यान में रखते हुए इन महिला श्रमिकों की उद्योग – लघु-उद्योग धंधे में क्या स्थिति रहेगी, उसको भी रेखांकित करना पड़ेगा. एक बड़ी तादात में महिलाकर्मी उद्योग से लगाकर घरों या अन्य प्रतिष्ठानों में कार्य कर रही है. वैश्विक श्रम मानकों को दृष्टिगत करते हुए उनका समायोजन कहाँ और कैसे होगा इसपर तत्काल विचार करने एवं ठोस कदम उठाने की आवस्यकता है. अंत में राज्यों एवं केंद्र की सभी एजेंसियों को सामूहिक प्रयास करके, इस आपदा को अवसर मान कर भावी योजना तैयार करके उसे लागू करने का निश्चय करें. आज की राजनैतिक एवं सामाजिक नेतृत्त्व से सबकी अपेक्षा है की भविष्य में भारत के मजदूरों को ऐसी दुरवस्था न देखनी पड़े।


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