एहतियात बरतें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढायें "आयुर्वेद अपनायें" :- लेखक अमित पाठक
ग्रामीणों ने तो मुफ्त में बंटने वाले खाद्यान को लेकर बैसाख की दुपहरिया काट डाली, मुफ्त के खाद्यान का सारा सिस्टम समझ गए लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग से काफी डिस्टेंसिंग बनाये रखा ...कोटेदारों को महीने में कितनी बार खाद्यान बाँटना है, समय सारिणी तक कंठस्थ करने के साथ सेनेटाइजर मौके पर नहीं रखा है, इतनी जागरूकता बिना किसी के बताए , बिना अपील के चक्षु में उतर गई पर खुद इस्तेमाल करना है यह अभी तक दिमाग मे नहीं घुसा....1400 किमी पैदल चल कर परिवार से मिलने की दृढ़ इच्छाशक्ति है लेकिन यह सोंच नहीं रखते कि आपका संक्रमण आपके सुरक्षित परिवार के लिए घातक साबित हो सकता है मतलब थर्मल स्क्रीनिग कराना सम्मान गिराना और होम क्वारन्टीन को अपमान समझना ही आज भारत मे एक लाख के पार की संख्या का कहीं न कहीं कारण है...कारण अनेकों बना डाला सिर्फ लॉकडाउन के सच को न समझने की जिद में...लॉक डाउन के चक्रव्यूह में घिरे कोरोना वायरस को मौका नहीं मिलता अगर निकलने का रास्ता हमने स्वयं न खोला होता...बावजूद सन्तुष्ट है कि जो होना होगा वो तो होगा ही, मेरे ख्याल से चारों युगों की सबसे कायराना सोंच इस वर्तमान की स्थिति में यह तथ्य पेश करने वाले लोगों की ही मानी जायेगी, इन्हें भी इतिहास अपने वीर साहित्य के अमित पन्नों में स्थान देकर अंकित करेगा । मरने का खौफ है लेकिन जीने की इच्छा को प्रबल करने की क्षमता नहीं जाग्रति कर सकते ऐसे लोग प्राचीन भारत के वीर सपूतों के मार्गदर्शन को निःसंदेह धूमिल करेंगे, अब भी विचार कर लेने की जरूरत है कि यह वीरों की जन्मभूमि और मरुस्थल से जल निकाल कर प्यास बुझाने वालों की कर्मभूमि है । सरकार श्रमिक को घर पहुंचाती है , भूंखें न रहे खाद्यान किट मुहैया करवाती है पश्चात मनरेगा में रोजगार देने का भी विचार कर कर रही और हम आप इस विषम परिस्थिति में भी आलोचना कर रहे कि...श्रमिक रास्ते मे कैसे दुर्घटना का शिकार हो गए । ऐसे आलोचकों का लिए देश का खाद्यान खत्म हो जाएगा पर इनकी संतुष्टि पर प्रश्नवाचक का निशान जरूर लगा मिलेगा ।एक पॉजिटिव केस मिलने पर जितनी पवित्रता आ जाती है साहब...निगेटिव में भी आज़मा कर देखिए, पॉजिटिव वायरस भी आने से पहले हजार बार सोंचेगा...इतना मजबूत करिये खुद को और रोग प्रतिरोधक क्षमता को , कि अदृश्य वायरस शरीर से टकराये भी तो नेस्तनाबूद हो जाये, कहते है कि खुदी को कर बुलंद इतना कि.....वायरस अपने आका से पूँछे बता...किस देश में भेज कर फंसवा दिया । वक्त आज हैसियत बनाने की नहीं है अपितु जीवन यापन करने की है । पड़ोसी देश भुखमरी के कगार पर है और हम भरे पेट से गृहयुद्ध कर रहे है...जरा सोंचिये एक बाप अपने बच्चे को कंधे पर बैठाये, चन्द कपड़ो से भरी झोली दूसरे हाथ में थामे, कई दिन से भूंखें प्यासे बिना चप्पल के इस तपती गर्मी में अपने आशियाने तक पहुँचने के लालसा की संकल्पता लिए चल पड़ा है ...तो क्या वो कसूरवार है, या उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचाने हेतु सरकार प्रतिबद्ध है तो...वह कसूरवार है । आज की दशा में होम क्वारन्टीन गलत नहीं है ,गलत है शासन प्रशासन के दिशानिर्देशों की अवहेलना कर नियमो को नज़रअंदाज़ करना । आज विमान से आया कोरोना अगर गाँव से चला होता तो शायद खड़े होने की जगह नहीं मिलती । भारत के पास आयुर्वेद की वह शक्ति है जिसे विज्ञान स्वीकार कर चुका है , आज जहाँ विज्ञान इस अदृश्य लाइलाज वायरस को लेकर मूकदर्शक बना चिंतित है तो आयुर्वेद वही अपनी प्रतिभा को समेटे खमोश है क्योंकि हम इतना आगे निकल गए है कि महाऔषधि गिलोय की जगह मलाई वाली चाय पर भरोसा किये बैठे है...नीम पर चढ़ी गुर्च (गिलोय) , आँगन में लगी तुलसी का पेय आज के फैसन ने दूर किया तो ..डेंगू मलेरिया और अब सरेआम कोरोना नें ललकारा... आयुष से दूर और प्रकृति को छेड़ने का मतलब आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करना है और जीवन भर ऐसे ही कोरोना जैसे संक्रमण के आने से चिंतित, परेशान होते रहना पड़ेगा... एहतियात ही कोरोना की दवा है और आयुर्वेद इसका सफल उपचार । कोरोना काल का अंत आयुष के मंत्र से ही लिखा जाएगा और तभी सम्भव है जब हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हुए लॉक डाउन के नियमो का सत्यनिष्ठा से पालन करेंगे ।