यदि भक्ति फलिभूत होती है तो समस्त सांसारिक कामनाओं का नाश कर देती है..

॥आज का भगवद् चिंतन॥


मैट्रो मत न्यूज ( अरुन शर्मा अक्स ) काम, क्रोध और लालच ये तीन भक्ति मार्ग के सबसे बड़े अवरोधक हैं।कामी, क्रोधी लालची, इनते भक्ति न होय।
भक्ति करै कोई सूरमा, जाति बरन कुल खोय।


कामी - कामनाओं से घिरा जीव कभी भी प्रभु की भक्ति नहीं कर सकता है। अगर ये भक्ति पथ पर भी बढ़ता है तो वहाँ भी इसकी भक्ति में अहोभाव कम और मांग ज्यादा होगी। भक्ति तो निष्काम बनने की यात्रा का ही नाम है।


भक्ति फलिभूत होती है तो समस्त सांसारिक कामनाओं का नाश कर देती है और कामना फलीभूत हो जाती है तो समस्त भक्ति का ही नाश कर देती है।


क्रोधी - क्रोध किसी व्यक्ति के अहम् का परिचायक होता है और जहाँ अहंकार है वहाँ ओंकार कैसे ठहर सकता है। क्रोध से ही क्रूरता का जन्म भी होता है और क्रोध ही दुराग्रह को भी जन्म देती है। भक्ति तो जीवन की अहम शून्यता का नाम है।


लालची - लालची व्यक्ति बाहर से भक्त ही मालूम होता है मगर उसकी आँख भी यदि बंद रहेगी तो समाधी के लिए नहीं अपितु बगुले की तरह मछली के ही लालच में बंद रहेगी।


वो प्रार्थना तो करेगा मगर उसकी प्रार्थनाओं में धन्यवाद और दूसरों के मंगल की कामना नहीं अपितु एक अपूर्णता, एक चाहना और स्वयं का स्वार्थ ही समाहित होगा।


जहाँ परमार्थ को छोड़कर स्वयं का स्वार्थ है, वहाँ भी भक्ति का प्रवेश संभव ही नहीं।


भक्ति करे कोई सूरमा, जाति वरण कुल खोई।


इन सबके बावजूद जहाँ चरित्र रुपी बल है, जहाँ अपरिग्रह रूपी बल है, जहाँ सत्य रूपी बल है, जहाँ पुरूषार्थ और परमार्थ रूपी बल है। जहाँ जाति, कुल, पंथ, और संप्रदाय से ऊपर उठकर केवल "सिया राम मय सब जग" की प्रबल भावना है, वही भक्ति महारानी का भी निवास है।


🙏🏻🌹हरे कृष्णा🌹🙏🏻


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