अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत.. बी एन झा
मैट्रो मत न्यूज ( चेतन शर्मा दिल्ली ) कोरोना वाइरस एक ऐसी बीमारी जिसने देश ही नही विदेशों में भी हाहाकार बचा रखा है जिससे लडने के लिये बस लॉकडाउन ही एक मात्र उपाय है ऐसे में भारत सरकार की गिरती अर्थव्यवस्था व महामारी बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आ गई है व लोगो पर इस चुनौती का क्या प्रभाव पड़ रहा है आइये जानते है इस मामले मे समाजसेवी व लेख़क बी एन झा का क्या कहना है।
सरकार डटकर खड़ी है करोना के सामने, नहीं होने देगी बंद सारे व्यापारिक संस्थान, छोटे छोटे उद्योग और फुटकर विक्रेता की दुकानें आदि करोना के कारण 45 करोड मध्यवर्गीय आबादी की भी सुध लेगी सरकार, घनघोर आर्थिक तबाही से निपटने के लिए तैयार है सरकार देश के मध्यम वर्ग की लगभग 45 करोड आबादी है जिसपर करोना महामारी से उपजी समस्याओं पर सरकार ध्यान तो दे रही है परन्तु इसकी गति को तीव्रता प्रदान करने की नितांत आवश्यकता है, वैसे तो बात का बतंगड़ बनाना कोई विपक्ष से सीखे परन्तु इस संवेदनशील मुद्दे पर प्रमुख एवम अन्य विपक्षी पार्टियां मौन धारण कर इनसे मुंह फेरे हुए है। इनकी इसी उदासीनता व मुंह फेरने के कारण आने वाले दिनों - महीनों में जीवन मरण का संकट पैदा होता नजर आ रहा है जिसके समाधान हेतु सारे विपक्ष को सरकार के साथ मिलकर माध्यम वर्ग के उन लोगों के जिनकी मासिक आमदनी 15 हजार से 50 हजार रूपए के आसपास है, कारगर कदम उठाने की आवश्यकता है। इनमे संगठित, असंगठित और ठेके पर अनुबंधित कर्मचारी हैं, किराना सहित गली, कूचों, गांवों, कसवों और छोटे मध्यम व बडे शहरों के दुकानदार और कुटीर, व मझोले उद्यमी आदि शामिल हैं, ये सभी कर भी देते हैं और यह हमारी अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाए रखने मे अहम भूमिका निभाते रहे हैं तथा स्थानीय रोजगार देने की गति को बनाए रखते हैं। स्थानीय कच्चे -पक्के माल की मांग व खपत में इनकी अहम हिस्सेदारी है। देश के कुल घरेलू जीडीपी में इनका योगदान बहुत ज्यादा होता रहा है। करोना महामारी के दौरान होने वाली इनकी बदतर स्थिति का आंकलन करना अतिआवश्यक है हालांकि सरकार का सख्त निर्देश है परन्तु जनमानस में चिंता व्याप्त होते जा रही है कि कर्मचारियों की नौकरी रहेगी या जाएगी, उनको अप्रेल और आगे के महीनों में लॉकडाउन जारी रहने के दौरान तनख्वाह मिलेगी भी या नहीं , लोन, क्रेडिट कार्ड, बिजली,मोबाइल आदि के बिलों ,किराया, हाउस टैक्स , आयकर आदि की देनदारियों का भुगतान और अपने घर परिवार का खर्च यह वर्ग कैसे कर पाएगा, यह सरकार के सामने चुनौती है जिसका यथासंभव सरकार प्रयास कर रही है, यह सभी के लिए चिंतन और मनन का विषय है। वर्तमान सरकार सहित सम्पूर्ण विपक्ष को मध्यम वर्ग की इस कठिन घडी में अनदेखी कदापि नही करनी चाहिए, यदि इनकी अनदेखी किया जा रहा है तो यह समझ से परे है। इन मध्यवर्गीय परिवारों में भुखमरी और मंहगाई सिर उठाने लगी है। मुफ्त राशन माध्यम वर्ग को नहीं मिलता है, उनके राशन कार्ड भी सरकारी नियमों के तहत नहीं बन सकते, जो गेहूं - चावल गरीबों को ही सही दिया जा रहा है, उसकी वर्तमान काल में उपयोगिता पर ही प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है, उस गेहूं को पिसवाने के लिए गली मोहल्लों की चक्की बंद हैं। सरसों के तेल के छोटे कोल्हू , दाल व चावल के कारखाने भी बंद हैं। नाई ,टेलर , प्लमबर, इलैक्ट्रीशियन सभी लॉक डाउन का पालन कर घर में है। गर्मी में आग बरसने लगी है, कूलर बनाने के कारखाने बंद हैं, बिजली मिस्त्री बाजार से गायब है, सारा रोजगार ठंडा हो गया है। अन्य प्रदेशों में गैर भाजपा सरकारों को केंद्र के साथ मिलकर प्रति व्यक्ति बिना राशनकार्ड वालों को और मध्यम वर्ग को प्रति मास 50 किलो गेहूं, 20 किलो चावल, 5 किलो दाल और 5 किलो चीनी व खाद्य सस्ती दरों देनी चाहिए।
सरकार पर यह व्यवस्था करने के लिए लगभग 20 हजार करोड रूपए मासिक का अधिकतम बोझ पड़ सकता है जिसके लिए सरकार कड़े से कड़ा कदम उठाने में कभी भी जरा सा भी नहीं हिचकिचाती और सरकार की मंशा भी ऐसा ही कुछ लगता है परन्तु हर बात पर विपक्ष द्वारा विरोध, शोरशराबा कतई उचित नहीं लगता। उन्हें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि देशहित में विपक्ष के नेता स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेई जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार कहकर सम्पूर्ण समर्थन देकर राष्ट्र धर्म निभाया था, आज वही समय आ गया है अपनी मातृभूमि की रक्षा करने की। अवकाश प्राप्त माध्यम वर्ग के बुजुर्गों के पेंशन में कटौती समय की नजाकत को देखकर किया गया फैसला है जिसका विरोध उन्होंने अभी तक नहीं कर सरकर को मौन समर्थन दिया है आवश्यकता है लघु कुटीर से मझले उद्यमियों को राहत देने की, राहत के नाम पर आवंटित एक लाख करोड रूपए मे से 75 हजार करोड में से यदि इनको कुछ राशि दे दिए जाएं तो अनुमान लगाया जा सकता है कि इस धन राशि से चार पांच करोड उद्यमियों को राहत मिल सकती है। खेतों में रब्बी फसल तैयार खड़ी है, फसल काटने वाले मजदूर पलायन कर चुके है और जो नहीं कर सके लॉक डाउन के तुरंत बाद अपने अपने गांव की तरफ पलायन को तैयार बैठे है, खेतों का फसल बर्बाद, मजदूर बिना फैक्ट्री, दुकानें सहित सारे काम धाम चौपट हो जाएंगे, देश की आर्थिक स्थिति कितनी गंभीर हो जाएगी, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है, सरकार की इस दिशा मे पैनी नजर होगी, इसे झुटलाया नहीं जा सकता, सरकार को भी वर्तमान आर्थिक संकट के महाकाल में दलगत राजनीति से दूर रहकर अर्थशास्त्री के ज्ञानी पुरुषों की एक टोली बनाने की अविलंब और नितांत आवश्यकता है और अर्थशास्त्री भी राष्ट्र धर्म का पालन कर सरकार को उचित सलाह दे ताकि प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी उस पर अमल करना शुरू कर दे वरना वही कहावत चरितार्थ होने वाली है। " अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत"