अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष शब्द देखिए "विकास द्विवेदी" की यह रिपोर्ट..
वाइरल ख़बर के मुताबिक़ हम आप लोगो के सम्मुख इस ख़बर को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रसारित कर रहे है।
मैट्रो मत न्यूज ( विकास द्विवेदी ) अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का जन्म 8 मार्च, 1908 को हुआ था। जब 15,000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क शहर की सड़कों पर अपने अधिकार को लेकर प्रदर्शन किया।कम घंटे, बेहतर वेतन और मतदान का अधिकार उनकी मांगे थी पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कार्यक्रम 1911 में आयोजित किया गया था उसके बाद ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में आयोजित किया गया था। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत महिलाओं ने अमेरिका के न्युयोर्क शहर से अपने हक के लिए की थी। बाद में इसे संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक मान्यता प्रदान की। ये महिलाएं ही हैं जो हमें अपने हक के लिए लड़ना सिखाती हैं। आज के दिन महिलाओं, उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया जाता है व लैंगिक एकता व समानता को प्रोत्साहित किया जाता है। महिलाओं को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है जिसकी वह हकदार हैं भारत में दिसंबर 2012 ये वो तारीख है। जिसे शायद ही कोई भूला हो। इतिहास के काले पन्नों में दर्ज इस तारीख ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।इंसानियत को शर्मसार करने वाली वो वारदात जिसने सड़क से संसद तक ही नहीं बल्कि देश और दुनिया में तहलका मचा दिया था। हम बात कर रहे हैं निर्भया गैंगरेप की। बलात्कार का ये मामला साल 2012 से 2020 तक आ पहुंचा है। हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था में अपराधियों को त्वरित सजा देने का कोई भी प्रावधान नहीं है इस प्रकरण में 2012 से लेकर वर्ष 2020 तक वर्तमान समय अंतराल में रेप पीड़िता की मां अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए कोर्ट के चक्कर काटने को मजबूर है तीन बार फांसी टल चुकी है और अब की बार नई तारीख और मिली है उम्मीद है कि इस बार फांसी की तारीख नहीं चलेगी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मैं यह कहना चाहता हूं कि हम केवल 1 दिन कार्यक्रम करके गोष्ठियों के द्वारा महिलाओं को सम्मान नहीं दिला सकते हमें इसे धरातल पर लाना होगा हमें ऐसे कार्य करने होंगे कि महिलाओं को उनका हक और वह सम्मान मिल सके ।जिसकी वह बराबर की हकदार हैं ।हमारे देश में महिलाओं को खिलौना समझा जाता है जब मन हुआ खेल लिया गया। और जब उनके साथ कोई अप्रत्याशित घटना होती है तो उनको यह कहकर चुप करा दिया जाता है कि वह चुप रहे तो ज्यादा अच्छा होगा नहीं तो घर परिवार की समाज में बदनामी होगी ।मैं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर यह पूछना चाहता हूं कि जब एक पुरुष गलती करता है तो उसको क्यों चुप ना रहने को कहा जाता है।ऐसी कोई जगह नहीं ऐसा कोई कार्यस्थल नहीं जहां पर महिलाओं का शारीरिक एवं मानसिक शोषण किया जाता हो अब तो विद्या के मंदिरों में भी छोटी-छोटी बच्चियों का भी यौन शोषण किया जाता है हमारा समाज किस दिशा की ओर जा रहा है यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि विद्यालयों में छोटी-छोटी बच्चियों के साथ यौन हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है जो कि सब मानव समाज के लिए एक बहुत ही दुखद बात है हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं को सम्मान और हल दिलाने की बात करते हैं लेकिन साल के 365 दिन उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घटनाओं पर चुप बैठते हैं ऐसा क्यों क्या एक ही दिन महिलाओं को सम्मानित करने से उनको हक मिल जाएगा मैं पूछना चाहता हूं कि हमारे समाज में महिलाओं को इतनी गंदी नजरों से क्यों देखा जाता है देश में चाहे वह नेता हो या कोई धर्म की आड़ में घिनौना काम करने वाला कथावाचक अक्सर मीडिया की सुर्खियों में नाम रहता है की कोई सेक्स स्कैंडल में पकड़ा गया या किसी के ऊपर दुष्कर्म के आरोप लगे बहुत दुख होता है कि जिस देश में नारियों की पूजा सर्वप्रथम होती है वहां पर ऐसी घटनाएं निरंतर होती जा रही हैं जो रुकने का नाम नहीं ले रही है यह हमारे सभ्य मानव समाज के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है अब तो हमारे समाज में शादी समारोह में लोग महिलाओं की योग्यता एवं उनके अनुभव को दरकिनार करते हुए इस बात पर ध्यान देते हैं कि शादी में उनको कितना रुपया और कौन सी गाड़ी मिलेगी ।हमारे समाज में लड़कियों के शादी के समय यह दहेज नामक दानव इस कदर हावी हो जाता है कि इसके चपेट में आकर ना जाने कितनी लड़कियां इसकी शिकार हो जाती हैं और कितनी आत्महत्या कर लेती हैं। एक पिता दहेज के चक्कर में दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हो जाता है और वह पूरी कोशिश करता है कि वह मांग पूरी कर सके वह दहेज को आड़े नहीं आने देता ।और उसके बावजूद भी उसकी बिटिया को वह सुख और सम्मान नहीं मिल पाता है जो उसको मिलना चाहिए। क्या दहेज ही सब कुछ है एक स्त्री का सम्मान नहीं। आज भी लोग लड़के की चाहत में नवजात बच्चियों की हत्या कर देते है। अभी भी हालात बदले नही है। इस साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2020 की थीम ईच फ़ॉर इक्वल है, जो लैंगिक रूप से समान एवं सशक्त दुनिया पर केंद्रित है। इस दिन न केवल महिलाएं अपनी खुशी जाहिर करती हैं, बल्कि हर पुरुष भी उनका आदर -सत्कार और प्रोत्साहित करता है ताकि हर लिंग का व्यक्ति एक समान दुनिया का निर्माण कर सके।
कन्या भ्रूण हत्या
मैं जीना चाहती हूं मुझे जीने दो
क्यों मार देते हो मुझे मेरे जन्म से पहले
नहीं हूं मैं किसी का बोझ
क्यों उड़ने से पहले काट देते हो मेरे पंख
मैं भी उड़ना चाहती हूं मैं जीना चाहती हूं मुझे जीने दो
मत देखो मुझे गंदी नजरों से
मैं भी तुम्हारी बहन बेटी हूं
क्यो समझते हो मुझे खिलौना
मेरे जिस्म से कहना बंद करो
मैं जीना चाहती हूं मुझे जीने दो
मैं इस धरती पर जन्म लेना चाहती हूं
मुझे जन्म लेने दो नाम रोशन करूंगी इस दुनिया में
क्यों मुझे जीने नहीं देते हो
मैं जीना चाहती हूं मुझे जीने दो
रिपोर्ट -विकास द्विवेदी बहराइच