रावण... रामायण का एक प्रमुख प्रतिचरित्र रावण, लंका का राजा रावण..
अपने दस सिरों के कारण जाने जाने वाला रावण,
रावण अर्थात दशानन (दश = दस + आनन = मुख)
मैट्रो मत न्यूज ( अनोखे लाल द्विवेदी ) किसी भी कृति के लिये नायक के साथ ही सशक्त खलनायक का होना अति आवश्यक है। रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है।बेशक रावण को हमारे समाज में खलनायक के तौर पर देखा जाता है और उसे बुराइयों का प्रतीक मानकर हर वर्ष उसके पुतले को दहन किए जाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है किंतु रावण में अनेक गुण भी थे। सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि के पौत्र और विश्रवा के पुत्र रावण एक परम शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा , अत्यन्त बलशाली , शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता ,प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी थे। रावण के शासन काल में लंका का वैभव अपने चरम पर था और उन्होंने अपना महल पूरी तरह स्वर्ण रजित बनाया था, इसलिये उसकी लंकानगरी को सोने की लंका अथवा सोने की नगरी भी कहा जाता है।
रावण मे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण शुमार शंकर भगवान के बड़े भक्तों में होता है। रावण महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान थे।वाल्मीकि ने अपने द्वारा रचित रामायण में रावण के गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उन्हें चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताया हैं। वे अपनी रामायण में हनुमान का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं कि
अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥
आगे वे लिखते हैं कि रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।
रावण को दुष्ट और पापी कहा जाता है। लेकिन रावण में शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा कि, हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम-भाव नहीं रखती तो मैं कदापि तुम्हें स्पर्श नहीं कर सकता। शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करना निषेध है अतः अपने प्रति अ-कामा सीता को स्पर्श न करके रावण शास्त्रोचित मर्यादा का आचरण करते है।
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते थे।बौद्धिक संपदा का संरक्षणदाता था रावण
श्रीकृष्ण जुगनू के एक प्रसंग में वर्णित है की लंकापति रावण पर विजय का पर्व अकसर यह याद दिलाता है कि रावण की सभा बौद्धिक संपदा के संरक्षण की केंद्र थी। उस काल में जितने भी श्रेष्ठजन थे, बुद्धिजीवी और कौशलकर्ता थे, रावण उनको अपने आश्रय में रखते थे। रावण ने सीता के सामने अपना जो परिचय दिया, वह उसके इसी वैभव का विवेचन है।उस काल का श्रेष्ठ शिल्पी जिन्हें हम विश्वकर्मा के नाम से जानते हैं वह भी रावण के दरबार की शोभा बढ़ाते थे उसकाल की श्रेष्ठ पुरियों में रावण की राजधानी लंका की गणना होती थी। यथेन्द्रस्यामरावती। मय के साथ रावण ने वैवाहिक संबंध भी स्थापित किया। मय को विमान रचना का भी ज्ञान था। कुशल आयुर्वेदशास्त्री सुषेण उसके ही दरबार में था जो युद्धजन्य मूर्च्छा के उपचार में दक्ष था और भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली सभी ओषधियों को उनके गुणधर्म तथा उपलब्धि स्थान सहित जानता था। शिशु रोग निवारण के लिए उसने पुख्ता प्रबंध किया था। स्वयं इस विषय पर ग्रंथों का प्रणयन भी किया।
श्रेष्ठ वृक्षायुर्वेद शास्त्री उसके यहां थे जो समस्त कामनाओं को पूरी करने वाली पर्यावरण की जनक वाटिकाओं का संरक्षण करते थे - सर्वकाफलैर्वृक्षै: संकुलोद्यान भूषिता। इस कार्य पर स्वयं उसने अपने पुत्र को तैनात किया था। उसके यहां रत्न के रूप में श्रेष्ठ गुप्तचर, श्रेष्ठ परामर्शद और कुलश संगीतज्ञ भी तैनात थे। अंतपुर में सैकड़ों औरतें भी वाद्यों से स्नेह रखती थीं।
उसके यहां श्रेष्ठ सड़क प्रबंधन था और इस कार्य पर दक्ष लोग तैनात थे तथा हाथी, घोड़े, रथों के संचालन को नियमित करते थे। वह प्रथमत: भोगों, संसाधनों के संग्रह और उनके प्रबंधन पर ध्यान देता था। इसी कारण नरवाहन कुबेर को कैलास की शरण लेनी पड़ी थी। उसका पुष्पक नामक विमान रावण के अधिकार में था और इसी कारण वह वायु या आकाशमार्ग उसकी सत्ता में था : यस्य तत् पुष्पकं नाम विमानं कामगं शुभम्। वीर्यावर्जितं भद्रे येन यामि विहायसम्।
उसने जल प्रबंधन पर पूरा ध्यान दिया, वह जहां भी जाता, नदियों के पानी को बांधने के उपक्रम में लगा रहता था : नद्यश्च स्तिमतोदका:, भवन्ति यत्र तत्राहं तिष्ठामि चरामि च। कैलास पर्वतोत्थान के उसके बल के प्रदर्शन का परिचायक है, वह 'माउंट लिफ्ट' प्रणाली का कदाचित प्रथम उदाहरण है। भारतीय मूर्तिकला में उसका यह स्वरूप बहुत लोकप्रिय रहा है। बस रावण का अभिमान ही उसके पतन का कारण बना। वरना नीतिज्ञ ऐसा कि राम ने लक्ष्मण को उसके पास नीति ग्रहण के लिए भेजा था, विष्णुधर्मोत्तरपुराण में इसके संदर्भ विद्यमान हैं।
विजयदशमी के इस पावन पर्व पर मैं परम शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा , अत्यन्त बलशाली , शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, महान वैज्ञानिक, प्रकांड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी लंकाधिपति दशानन को नमन करता हूं क्योंकि
रावण एको अस्ति
ना भूतो ना भविष्यति।
अधर्म पर धर्म की विजय सत्य पर असत्य की विजय का पर्व विजयादशमी दशहरे की आपको एवं आपके परिवार को मेरे एवं मेरे परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं बधाई ।।