किसान समस्या का हल कब करेंगे राजनीतिक दल :- चन्द्रमणि पाण्डेय

मैट्रो मत न्यूज ( नीरज पाण्डे ) देश को आजाद हुए यूं तो 72 वर्ष से भी अधिक हो गए हम संचार, यातायात, रक्षा, शिक्षा, चिकित्सा हर क्षेत्र में न केवल प्रगति के पथ पर द्रुत गति से आगे बढ़ते हुए विश्व के गिने-चुने विकसित देशों के समानांतर खड़े हो गए हैं अपितु हर क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों, अधिकारियों को कार्य करने हेतु उचित माहौल व संसाधन प्रदान कर चुके हैं फलत: व्यापारी, कर्मचारी, अधिकारी सबके जीवन स्तर में काफी सुधार हुआ है किंतु देश के पालनहार धरती के भगवान किसान की दशा दिशा में कोई परिवर्तन नहीं हो पाया है उसकी समस्या जस की तस बनी हुई है आजादी के इन 72 वर्षों में अनेक दलों व उनके नेताओं ने गांव, गरीब, किसान की दशा सुधारने का वादा तो किया किंतु भोले भाले गांव, गरीब, किसान का अमूल्य मत पाकर सत्तासीन होते ही अधिकारियों व पूंजीपतियों के जाल में युं फंसा कि इन 72 वर्षों में किसानों की दशा सुधारना तो दूर किसान समस्या का संकलन कर समाधान खोजने हेतु किसान आयोग का भी गठन नहीं हो पाया किसान मसीहा चौधरी चरण ने गांवों के विकास हेतु देश का 50%बजट घोषित किया किन्तु उनके बाद की सरकारों ने उसे समाप्त कर दिया वर्तमान में देश की 70% ग्रामीण आवादी हेतु महज 28%धन आवंटित है लालबहादुर शास्त्री जी ने जय जवान जय किसान का नारा दिया पर देश में सिर्फ पूंजीपतियों व नेताओं की जय जयकार है इतना ही नहीं 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी ने किसानों की दशा में सुधार हेतु स्वामीनाथन आयोग का गठन तो किया पर उसकी रिपोर्ट न तत्कालीन सरकार ने लागूं किया न वर्तमान सरकार ने ही लागू किबढ़ती महंगाई के क्रम में सांसद विधायक व कर्मचारियों का वेतन भत्ता तो बढा पर देश का भरण पोषण करने वाले उत्पादक अन्नदाता के हितों को लेकर उसके उत्पाद के भंडारण व संरक्षण हेतु समुचित सरकारी व्यवस्था नहीं बनाई गई जबकि जिस तरह एक मां अपने बच्चे का पालन पोषण करती है उसी तरह किसान अपनी फसल को अपने खून पसीने से सींचता है व फसल में वह अपना अपने परिवार का भविष्य देखता है वह सपने बुनता है बच्चे की पढ़ाई का दवाई का बिटिया की सगाई का किंतु जब उसकी फसल पककर तैयार होती है तो उचित भंडारण के अभाव में अपनी फसलों को औने पौने दाम पर बेचने को विवश हो जाता है इतना ही नहीं कभी  अतिवृष्टि अनावृष्टि के चलते तो कभी छुट्टा जंगली जानवरों के आतंक से उसकी फसल नष्ट हो जाती है जिससे उसके संजोये हुए सपने चकनाचूर हो जाते हैं कारण उसे अपनी लागत के समानांतर दाम मिलना भी मुश्किल हो जाता है जबकि ब्रिटिश हुकूमत के ईष्ट इंडिया कंपनी के तर्ज पर पूंजीपति किसान का उत्पाद औने पौने दाम पर खरीद कर भंडारण कर लेते हैं तो उसी उत्पाद को व उससे बने सामान को 10 गुना से भी अधिक दाम पर बेचते हैं आए दिन देखने को मिलता है कि किसान का आलू प्याज टमाटर लहसुन आदि पांच से ₹10 किलो उसके खेतों से खरीदा जाता है जबकि उसी उत्पाद को किसान के खेत से समाप्त होते ही 50 से ₹100 किलो बेचा जाता है किसान का आलू कभी उसके खेत से ₹10 किलो से अधिक नहीं खरीदा जाता जबकि उसी आलू से बने चिप्स को ₹200 किलो तक बेचा जाता है इतना ही नहीं देखा जाए तो सबसे खराब सड़क, शिक्षा व्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था गांव में ही पाया जाता है जिससे किसान के बच्चों की उचित परवरिश भी नहीं हो पाती राजनीतिक दल जाति धर्म लिंग आधारित आरक्षण व सुविधाएं तो देने की बात करते हैं पर सभी वर्गों से आने वाले किसान के हित में कोई नीति नहीं लाते फलतः देश ही नहीं विदेश को भी जीवन प्रदान करने हेतु अन्नोत्पादन करने वाला उत्पादक तो कभी-कभी आत्महत्या को भी विवश हो जाता है कहा तो जाता है कि प्रजातंत्र में सत्ता की चाबी जनता के पास होती है किंतु 72 वर्षों की सरकारी नीतियों को देखने से पता चलता है कि आज भी सत्ता की चाभी राज दरबारियों पूजीपतियों व अधिकारियों के ही हाथों में निहित है फलतः देश की 70% कृषि आधारित जनता हताश व निराश है लोग खेती छोड़कर शहरों की तरफ पलायन करने को मजबूर हैं जिसका परिणाम आज बड़े-बड़े शहरों में नवयुवक मंदी की मार झेल रहे हैं भले ही आज राजनीतिक दलों के विशेषकर सत्तासीनों की नीतियों का दुष्परिणाम आम जनता झेल रही है किंतु यदि समय रहते किसानों की समस्या का हल खोजते हुए पुराने जमाने के कहावत (उत्तम खेती, मध्यम बान, निकृष्ट नौकरी, भीख निदान)
को हमने चरितार्थ नहीं किया तो आने वाले दिनों में जिस तरह खेती-किसानी से लोगों का मोहभंग हो रहा है खाद्यान्न संकट भी खड़ा हो जाएगा फलतः सारा विकास विनाश में परिवर्तित हो जाएगा राजनीतिक दलों को चाहिए कि अपने हितों की भांति सर्व सम्मति से किसान आयोग का गठन कर किसानों को लेकर बेहतर कृषि नीति बनाते हुए न केवल खाद बीज पानी की निशुल्क उपलब्धता सुनिश्चित करें अपितु फसलों व उत्पादों के संरक्षण की भी समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करते हुए किसान को सुनिश्चित लाभ दिलाएं व कालाबाजारी पर कठोर कार्रवाई करते हुए उस पर अंकुश लगाएं किसानों को भी बेहतर व्यवस्था उपलब्ध कराएं कम से कम मेहनत व देखभाल में किसान बेहतर उत्पादन कैसे कर कैसे सुखी संपन्न जीवन यापन कर सके उस पर कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लें ऐसा तभी होगा जब किसान भी जाति धर्म दल के बंधन से परे जमीन से जुड़े किसान नेता को चुनकर सदन पहुंचाने का काम करें ।


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