एक ऐसा गायक जिसने सबसे ज्यादा धार्मिक गीत गाये

 


एक ऐसा गायक जिसने सबसे ज्यादा धार्मिक गीत गाये : रफी साहब


(Metro Mat News) हिंदी फ़िल्मी  संगीत का इतिहास यूँ तो १९३८ से माना जाता है, मूक फिल्मो के बाद बोलती फिल्मो के आने से हिंदी फिल्मो का दायरा भी बड़ा और इन फिल्मो मे संगीत की कलाओ को भी इस्तेमाल किया जाने लगा.संगीत यानी के गाने आने के बाद फिल्मो को गतिमान होने मे आसानी मिलने लगी. हिंदी गानो के सहारे फिल्म आगे बढ़ती थी.के  सहगल , सुरेंदर , राजकुमारी , सुरैय्या , शमशाद बेगम , नूरजहां शुरूआती दौर के प्रसिद्ध  गायक गायिका थे , उसके बाद वक़्त बदला , साथ साथ हीरो हेरोइन भी बदले और गायक भी. मुकेश , तलत मेहमूद , हेमंत कुमार , मन्ना डे साहब  , किशोर दा एवं मोहम्मद रफ़ी साहब का आगमन हुआ.
आज मैं जिस मोस्ट वर्सटाइल सिंगर की बात कर रहा हूँ वो जिस कलाकार की आवाज़ मे गाता था ऐसा लगता था की वो कलाकार खुद ही गए रहा हो . क्या जॉनी वॉकर क्या मेहमूद , क्या धर्मेंद्र  क्या शम्मी कपूर , क्या देव आनंद और क्या दिलीप कुमार.ऐसा लगता था की इन कलाकारों की आत्मा उस गायक मे समां जाती थी गाते वक़्त .जी हाँ बात कर रहे हैं सुरो के राजा , सिंगर ऑफ़ द मिलेनियम , सर्व कला गुण सपन्न लीजेंड मोहम्मद रफ़ी साहब की .रफ़ी साहेब के बारे में इतना कुछ पहले ही लिखा जा चूका है की कुछ और  क्या लिखे , शब्द कम पड़ जाते हैं , फिर भी दिल है की मानता नहीं कुछ लिखे बिना .रफ़ी साहब को हिंदी फिल्मो का तानसेन कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.💐🌹❤️


एक ऐसा गायक जिसने सबसे ज्यादा धार्मिक गीत गाये और वो सब के सब हिट भी साबित हुए . उसने जब राम भजन गया (सुख के सब साथी , दुःख मे न कोई ) तो सब राममय हो गए , उसने जब देखभक्ति गीत गाया (कर चले हम फ़िदा जानो तन साथियो ,  ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम , आवाज़ दो हम एक हैं ) तो देशभक्ति की ज्वाला दिलो मे धधकने लगी  थी. क्या रोमांस क्या ग़ज़ल , क्या शाष्त्रीय गीत क्या क़व्वाली , क्या ऊँचे स्वर के गीत , सुरो की किताब में कोई ऐसा राग नहीं था जिसको रफ़ी साहब ने न गाया हो .हर बड़े छोटे स्टार को उन्होंने अपनी आवाज़ देके उनको हिट करने में बड़ा योगदान दिया💐🎊🌹🎈❤️.रफ़ी साहब अपने फन के बड़े माहिर थे , सुरो पे उनकी जितनी बादशाहत थी उतनी ही अपनी असल ज़िंदगी में भी थी , एक नेक दिल , सीधा साधा स्वभाव और चेहरे पर हर समय एक मीठी सी मुस्कान.🎼🎶🎵


कई दौर आये कई दौर गए , कई सिंगर आये कई गए , बहुत से महान सिंगर भी हुए पर रफ़ी जैसा सिर्फ एक बार जन्म लेता है , हज़ारो  सालो में एक बार  बल्कि पूरी कायनात में सिर्फ एक बार. ❤️🎼🎶🎵🌹


अक्सर ये सुनने में आता है की १९७० से ८० के दशक में जब  किशोर दा अपने चरमोत्कर्ष पर थे उस समय रफ़ी साहेब हाशिये पर थे , जोकि सत्य से बिलकुल परे है. हालांकि इसमे कोई २ राय नहीं है की किशोर दा बेहद अद्भुत प्रतिभा के स्वामी थे.उनके गायन की  बड़ी जबरदस्त शैली थी.लेकिन रफ़ी साहब ने उस दौर में भी जबरदस्त हिट गीत दिए जो आपकी जानकारी के लिए नीचे लिख रहा हूँ :🙏
" क्या हुआ तेरा वादा , वो कसम वो इरादा" , ये जो चिलमन है दुश्मन है हमारी , चुरा लिया है तुमने जो दिल को , आज मौसम बड़ा बईमान है बड़ा , तेरी बिंदिया रे , इतना तो याद है मुझे , गुलाभी आंखें जो तेरी देखि , यूँही तुम मुझसे बात करती हो , ये रेशमी ज़ुल्फ़ें , हम किसी से कम नहीं कम नहीं , नफरत की दुनिया को छोड़कर , मैं जट यमला पगला दीवाना , आज मेरे यार की शादी है , चलो रे डोली उठाओ कहार , छुप गए सारे नज़ारे , कोई नज़राना लेकर आया हूँ मैं , हाय रे हाय नींद नहीं आये , खुश रहे तू सदा , खिलौना जानकार तुम तो , सुख के सब साथी , ये दुनिया ये महफ़िल , तुम जो मिल गए हो और तेरी गलियों में न रखेंगे कदम ❤️🌹🎈🎊💐🙏. 


ये लिस्ट और भी लम्बी है पर इन खूबसूरत गीतों के बारे में जितना लिखा जाये उतना कम है.लेकिन जो इंसान जिसका हक़दार है उसको उस चीज़ से मरहूम नहीं रखा जा सकता.
ये ज़िक्र जब चला है तो काफी  लोग जानते ही होंगे की रफ़ी साहब दिल के कितने भोले और सीधे थे , कई नए नए संगीतकार ऐसे थे जो रफ़ी साहेब से गवाना चाहते थे पर रफ़ी साहेब के फीस देने के लायक पैसे न होने के कारण वो उनसे बात नहीं पाते थे तब रफ़ी साहेब उनके पास खुद जाते थे कई बार उनको अपने पास बुलवा लेते थे  और उनके गीत फ्री तक में गाते थे.नौशाद  साहेब ने एक बार कहीं बताया था की रफ़ी साहेब जब अपने लंदन के शो (रफ़ी साहब का आखिरी टूर ) से वापस आये तो नमाज़ियों के लिए चटाईंयां लेकर आये , कहते थे की नमाज़ियों को धुप  में नमाज़ पड़नी पड़ती है. तो ऐसे थे रफ़ी साहेब .
रफ़ी साहेब मन्ना दा  और किशोर दा के अच्छे दोस्त थे , रफ़ी साहेब और मन्ना दा  अक्सर एक साथ पतंग उड़ाया करते थे. इन महान गायको का आपस में बहुत प्यार था और किसी तरह का कोई आपसी मन मुटाव नहीं था. मन्ना दा तो अक्सर कहते थे ही की रफ़ी साहेब जैसा सिंगर कभी नहीं हो सकता.ऐसे कई तमाम किस्से हैं जिनका ज़िक्र चलेगा तो थमने का नाम नहीं लेगा. वैसे  भी रफ़ी साहेब के बारे में जितना लिखा जाये कम है.
मेरी तरह रफ़ी साहेब के चाहने वाले आज भी यही यक़ीन रखते हैं की रफ़ी साहेब उनके आस पास ही हैं .आप सब चाहने वालो से विदा लेता हूँ रफ़ी साहेब के गाये अंतिम गीत के साथ :


" तेरे आने की आस है दोस्त , शाम फिर क्यू उदास है दोस्त ' .
महकी महकी फ़िज़ा ये कहती है , तू कहीं आस पास है दोस्त 


जय रफ़ी साहब 


लेखक:-
प्रवीन जोशी


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